सकल दिगम्बर जैन समाज , पटना के असीम पुण्योदय से चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज के परंपरा के तृतीय पट्टाचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य सप्तम पट्टाचार्य श्री 108 विपुल सागर जी महाराज का 44 वां एवं संघस्थ साधु श्री 108 भद्रबाहु सागर जी महाराज व मुनिराज श्री 108 भरतेश सागर जी महाराज का पावन मंगल वर्षायोग 2018 जैन परंपरा के अडिग शीलव्रतधारी महान संत महामुनि सेठ सुदर्शन स्वामी के मोक्ष नगरी पाटलिपुत्र (पटना) की पावन धरा पर गुरूवार को भक्तिमय वातावरण में धूमधाम के साथ चातुर्मास हेतु मंगल कलश स्थापित हुआ।
प्रातः में मूलवेदी श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के समक्ष जिनालय में नित्य अभिषेक , शांतिधारा , विशेष पूजा-अर्चना के पश्चात दीप प्रज्जवलन कर समारोह की शुरूआत हुई ।
आचार्य श्री के मंगल चातुर्मास कलश स्थापित करने व गुरुदेव के पाद प्रक्षालन करने का पुण्यशाली पात्र बोली के माध्यम से चयनित किया गया , तीन प्रकार के कलशों को श्रावकगण भक्ति – भाव के साथ हर्षित मन से सभी कलश जैन आचार्य श्री के मुखारबिंद से विधिविधान पूर्वक मंत्रोच्चारण के बीच शुद्धि के साथ स्थापित किया ।
ये सभी कलश विश्व शांति व विश्व कल्याण के उद्देश्य और चार माह के वर्षायोग के निर्विघ्न सानंद सम्पन्न होने की मंगल कामना से स्थापित किये जाते है।
इस विशेष अनूठे धार्मिक आयोजन को लेकर जैन श्रद्धालुओ के बीच खासा उत्साह देखते ही बन रहा था , सभी श्रावकगण भक्ति आराधना के रंग में रंगे हुए थे ।
जैन संत आचार्य गुरूवर का मंगल चातुर्मास कलश स्थापना अनुष्ठान शुरू होने के विशेष पल के साथ साक्षी बनने का इंतजार भक्तों को अतिउत्तसाह पूर्वक था ।
इसमें कुछ ऐसे भी श्रावक मौजूद थे जिन्होंने किसी जैन साधु के मंगल चातुर्मास कलश स्थापना समारोह का प्रथम बार साक्षी बने।
कलश स्थापना के पश्चात श्रद्धालुगण कलश स्पर्श के लिए उमड़ पड़े , सभी ने बारी-बारी से मंत्रोच्चारण से पूर्ण कलश को स्पर्श कर प्रभु से अपनी मंगल कामना की।
तत्पश्चात श्रावकों ने संगीतमयी वातावरण में आचार्य गुरूदेव का मंगल आरती कर आर्शीवाद प्राप्त किया ।
सभी जैन धर्मावलंबियों ने इस पल का साक्षी बन और आचार्य गुरूदेव का मंगल आर्शीवाद सहित धर्म लाभ प्राप्त कर खुद को धन्य किया ।
इसी क्रम में हो रहे गुरूभक्ति , भजन संगीत के बीच श्रावकजन खूब झूमें और आनंद लिये।
वर्षाकाल में जैन साधु एक स्थान पर रहकर करते हैं चातुर्मास :
आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में भक्तजन से चातुर्मास की अवधारणा और उद्देश्य को स्पष्ट बताते हुए कहा कि जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है , भगवान महावीर का दिव्य संदेश “जियो और जीने दो” का पालन हमें अवश्य करना चाहिए।
वर्षाकाल में अनंतो जीवों की उत्पत्ति बहुतायत की संख्या में चारों ओर व्याप्त रहते है। ऐसे में पदविहारी जैन साधु-साध्वी से उनके विहार में किसी सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों की हिंसा न हो जाय और “अहिंसा परमो: धर्म: ” को ध्यान में रखते हुए जैन संत वर्षाकाल के चार माह तक अपनी पदयात्रा को रोक कर अपने आत्मकल्याण हेतु स्वाध्याय, सामायिक, धार्मिक – आध्यात्मिक ग्रंथों, जैन धर्म व दर्शन का अध्ययन – मनन करते है।
आचार्य श्री ने अपने आशीष वचन में कहा कि आज के नवयुवकों , नये पीढ़ियों को अधिक से अधिक धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे , ताकि आने वाले भविष्य में जैन धर्म का विस्तार व धर्म प्रभावना बनी रहे।
आज के युग में जो चकाचौंध चल रही है वो उस उलझन से दूर रहकर सात्विक जीवन बितायें ।
वहीं प्रवीण जैन (पटना) ने बताया कि इस विशेष आयोजन को लेकर मुनि संघ चातुर्मास कमिटी व पाटलिपुत्र दिगम्बर जैन समिति सहित सकल दिगम्बर जैन समाज, पटना जोर-शोर से तैयारियों में जुटे हुए थे और यह भव्य धार्मिक आयोजन धूमधाम के साथ सानंद संपन्न हुई ।
सेठ सुदर्शन स्वामी के निर्वाण क्षेत्र में किसी दिगम्बर जैन साधु का मंगल वर्षायोग हो रहा है ये हम जैन समाज के लिए सौभाग्य व पुण्य की बात है जिससे हमारा जीवन मार्ग प्रशस्त होगा और इस बीच नगर में धर्म ज्ञान की गंगा बहेगी।
गुरुदेव ने जैन संतो के महत्त्व व चर्या को विस्तार रूप से श्रावकों के बीच बताया।
वर्षाऋतु में जैन साधु-संत एक धार्मिक स्थल पर रहकर अपना चार माह का चातुर्मास व्यतित करते हुए धर्मध्यान में लीन रहते है।
बताया गया कि आचार्य श्री विपुल सागर जी महाराज ससंघ का चातुर्मास के दौरान 15 किलोमीटर तक विहार संकल्पित है।
बता दें कि इस दौरान जैन साधु चातुर्मास स्थल से दूसरे जैन धर्म स्थल तक एक निश्चित तय सीमा के अंतराल में ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक विहार करते है।
प्रवीण जैन (पटना)