Jain Temple in Zawar – जावर ग्राम में इसा पूर्व से जस्ता,शीशा तथा परवर्ती काल में चांदी के खनन के कारण एक समृद्धशाली नगर के रूप में विकसित हो गया था|सम्पूर्ण मेवाड़ के राजस्व का आधा भाग जावर से प्राप्त होता था| मेवाड़ के शासको ने जावर तथा इसकी खदानों को गुप्त रखने का प्रयास किया था किन्तु फिर भी मेवाड़ पर सल्तनत कालीन और मुग़ल आक्रमणों के पीछे मेवाड़ का दिल्ली-गुजरात के प्रमुख व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के अलावा जावर की खदानों से निकलने वाली चांदी भी थी|जावर की खानों के इसा पूर्व से यहाँ व्यापारी वर्ग का आगमन रहा है तथा अनेक व्यापरी यहाँ बसे| यहाँ बसे व्यापारी वर्ग ने जो की ज्यादातर जैन धर्म के अनुयायी थे ने अनेको भव्य Jain Temples का निर्माण करवाया था|
Jain Temple in Zawar
वर्तमान में जावर में एक दर्जन से अधिक Jain Temple मौजूद है जिनमे से अनेक मंदिर एकदम जर्जर अवस्था में है जिनका तत्काल संरक्षण करवाया जाना आवश्यक है| जावर के Jain Temples को दो भागो में बाटा जा सकता है पहले वो जो पुरानी या जुनी जावर में स्थित है तथा दुसरे वो मंदिर जो नई जावर में स्थित है हालांकि दोनों प्रकार के मंदिर सैंकड़ो साल पुराने है|
जावर में जैन धर्म और Jain Temple का इतना विकास हुवा की तत्कालीन समय में जावर प्रमुख जैन तीर्थ के रूप में प्रसिद्द था तथा अनेक जैन संत यहाँ विहार करते थे|प्रसिद्द इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी जी ने सोम सौभाग्य काव्य को संदर्भित करते हुवे लिखा है की महाराणा लाखा के शासन काल के दौरान जब सोम सुन्दर सूरी जब देलवाडा आये थे तब महाराणा लाखा ने अपने पुत्र चुंडा के साथ उनकी आगवानी की थी| सोमसुन्दर सूरी के शिष्यगन जावर के शान्तिनाथ चैत्य की प्राणप्रतिष्ठा में आये थे|
जावर में पाए जाने वाले समस्त मंदिर निर्माण की दृष्टि से काफी हद तक एकरूपता लिए हुवे है किन्तु पंचबलायती जैन मंदिर अपने विशिष्ट स्थापत्य कारण अलग से ही दिखाई देता डा अरविन्द कुमार ने अपनी पुस्तक जावर का इतिहास में इसका बहोत अच्छा वर्णन किया है|पुराणी जावर में स्थित ये मंदिर पार्श्वनाथ मंदिर के पीछे तथा मुख्य सड़क के किनारे पर स्थित है तथा इसके दूसरी तरफ माताजी का मंदिर है| वर्तमान में मंदिर के समीप ही हिन्दुस्तान जिंक का खुदाई का कार्य चल रहा है जिससे ये मंदिर पूर्णत धुल धूसरित हो चूका है|
इस मंदिर की बनावट अन्य जैन मंदिरों से पूर्णत भिन्न है इस मंदिर में गर्भ गृह एक लंबे चतुर्भुज की तरह है जिसमे पांच जैन संतों की मुर्तिया विराजित थी वर्तमान में पांच चोकिया या वेदिया तो है किन्तु मुर्तिया गायब हो चुकी है| मंदिर के ऊपर पांच शिखर की बजाय तीन शिखर ही निर्मित है जो की संभवत पर्याप्त उंचाई के पांच शिखर नहीं बना पाने के कारण तीन ही बनाए गए होंगे|शिखर पूर्णत क्षतिग्रस्त अवस्था में है यत्र तत्र उनकी इटे बाहर निकल आई है| मंदिर के बाहर मंडप अनेक स्तंभों पर टिका हुआ है|
मंदिर में हमें कोई शिलालेख नहीं दिखाई देता है केवल एक स्तम्भ पर श्रम अंकित है| शिलालेख नहीं होने के कारण मंदिर के निर्माण की तिथि और निर्माता के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिल पाती है| किन्तु इस मंदिर के पास के अन्य मंदिर भूमि तल से काफी नीचे है जो समय के साथ भराव एवं मिटटी में दबने के कारण हुवा प्रतीत होता है तथा इस मंदिर का अपेक्षाकृत भूमि तल पर होना ये सिद्ध करता है की ये मंदिर अपने आसपास के मंदिरों के काफी बाद में निर्मित हुवा है|
डा अरविन्द कुमार के अनुसार पंचबलायती मंदिर का प्रचलन सिगाम्बर जैन समाज में देखा जाता है जबकि श्वेताम्बर इस तरह के निर्माण के पक्षधर नहीं है| जैन परंपरा के अनुसार पंचबलायती मंदिरों में निम्नलिखित पांच जैन तीर्थंकरो को स्थापित किया जाता है 1. वसुपूज्य 2.मल्लिनाथ 3. नेमिनाथ 4. पार्श्वनाथ 5.महावीर स्वामी इस तरह के मंदिर के निर्माण के पीछे जैन समाज को अधिक संगठित एवं सबल बनाने की भावना निहित रही होगी|
इस मंदिर के अलावा जावर के अन्य जैन तथा अन्य मंदिरों के तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है अन्यथा हम हमारी प्राचीन विरासत को गँवा देंगे|
शरद व्यास – उदयपुर