दमोह, संस्कार विहीन शिक्षा अर्थहीन है। इसलिए कोई भी व्यक्ति शिक्षित तो हो सकता है किंतु संस्कारवान एवं समझदार हो यह आवश्यक नहीं है। 108 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने विद्याभवन में आयोजित अपने प्रात:कालीन प्रवचनों में उक्त उद्गार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि अंतरंग और बाह्यरंग दोनों में एकरूपता होनी चाहिए। आज के भौतिक जीवन में मोबाईल, टीवी आदि आज की युवा पीढ़ी को दिशाहीन कर रहे हैं। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को इनसे दूर रखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि ये इनके चरित्र एवं भविष्य को खराब कर सकते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि आज मोबाइल कनेक्शन गांव-गांव तक पहुचं रहा है और इसके लिए मोबाइल टावर लगाये जा रहे हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य की दृष्टि से घातक है। उन्होंने आगे कहा कि माताएं अपने छोटे बच्चों को लकड़ी के डंडे से मारने का दिखावा मात्र करती हैं ताकि बच्चा गलती न करे किंतु बच्चे को चोट पहुंचाने का उसका इरादा नहीं होता है। इसलिए बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए आपकी देख-रेख एवं आर्दशों के सीख की जरूरत है। इसके बाद आचार्यश्री का पाद-प्रक्षालन कर सामूहिक पूजन-अर्चन किया गया।