विपरीत स्थिति आते ही ज्यदातर लोग अपना धर्म छोड़ इधर-उधर भटकने लग जाते हैं, जो यह दर्शाता है कि तुम्हें अपने धर्म और भगवान पर भरोसा नहीं है। आपका इधर-उधर भटकना कोई पाप नहीं है किंतु ऐसा कर आप अपने धर्म और भगवान का अपमान जरूर कर रहे हो। इसलिए सबसे पहले अपने धर्म और भगवान पर विश्वास और आस्था होना बहुत जरूरी है। राजस्थान के किशनगढ़ नगर में चातुर्मासरत मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी महाराज ने आर. के. कम्युनिटी सेंटर में हो रहे प्रवचन के समय ब्यक्त किये।
उन्होंने कहा आपके अंदर इतनी श्रद्धा और आस्था होनी चाहिए कि यदि मुझे मरना भी पड़े तो मर जाऊंगा किंतु मन में तनिक भी संशय नहीं बल्कि अटूट श्रद्धा होनी चाहिए। ऐसी श्रद्धा जिस श्रद्धालु के अंदर धर्म और भगवान के प्रति होगी, उसका दुनिया की कोई भी शक्ति बांल-बांका नहीं कर सकती। उन्होंने यह भी कहा कि संकट के समय भगवान याद आते हैं। यदि केवल संकट के समय भगवान को याद करते हो तो फिर तुम्हारा संकट कम हो ही नहीं सकता। इसलिए हम सभी को अच्छे-बुरे सभी समय में भगवान की भक्ति करते रहना चाहिए।
मुनिश्री ने मंदिर जीर्णाद्धार की बात पर जोर देकर कहा कि संकटकालीन समय में आदिनाथ को याद करते हो और कहते हो कि भगवान मेरे हैं और जब मंदिर निर्माण की बात आती है तो कहते हो कि मंदिर तो समाज का है। ऐसे में जब तुम पर कोई संकट आया तो भगवान भी यहीं कहेंगे कि मैं भी पूरे समाज का हूं न कि तुम्हारा। मुनिश्री ने कहा कि मकान के लिए, बच्चों की पढ़ाई से लेकर शादी के लिए, गाड़ी के लिए या अन्य काम के लिए रकम रोककर बाकी पैसा दान द्वारा मंदिर में लगा दो। और देखोगे कि जितना पैसा मंदिर में लगाओगे उसी शेयरिंग में वह तुम्हारे पास वापस लौटकर आएगा।
उन्होंने आगे कहा कि जैन कुल में जन्म लिया है तो पावन होकर यानि मुनि बनकर मरण या मंदिर निर्माण कर ही मरण करना क्योंकि जब मंदिर में कोई पूजन-अभिषेक करेगा तो उसका पुण्य भी मंदिर बनवाने वाले को ही लगेगा। मुनिश्री ने आगाह करते हुए कहा कि पाप कर्म सफलता हेतु भगवान या गुरू को कतई याद मत करना और न ही इन्हें शामिल करना। यदि ऐसा किया तो तुम्हारे पाप कभी कटने वाले नहीं है।