दिल्ली में रहने वाले 47 साल के नरेंद्र को सामान्य सा बुखार आया था। परिवार को एहसास था कि कोरोना का एक लक्षण ये भी है। इसलिए बिना देर किए अस्पताल पहुंच गए। व्यवस्था की बानगी देखिए कि दो दिन तक रिश्तेदार नरेंद्र को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काटते रहे मगर बेड नहीं मिला। इसी बीच नरेंद्र कोविड-19 पॉजिटिव टेस्ट हुए। सिस्टम ने नरेंद्र को उनके हाल पर छोड़ दिया। आखिरकार तीन जून 2020 को नरेंद्र ने कोविड-19 से दम तोड़ दिया।
दो अस्पतालों ने तो देखते ही हाथ खड़े कर दिए
कुछ दिन पहले नरेंद्र को बुखार हो गया। बुखार उतरा नहीं और तीन-चार दिन में सांस भी फूलने लगी। 1 जून को पहली बार नरेंद्र को अस्पताल ले जाया गया। सबसे पहले उन्हें शाहदरा में एक लोकल अस्पताल में दिखाया गया। कोरोना का शक था मगर अस्पताल ने कहा कि उनके यहां टेस्ट नहीं हो सकता। फिर नरेंद्र को कड़कड़डूमा में पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर लाया गया। परिवार के मुताबिक, यहां लक्षण चेक किए गए मगर कोविड मरीजों को देखने के इंतजाम यहां पर भी नहीं थे। नरेंद्र के साले विकास के मुताबिक, फिर वो लोग मैक्स पटपड़गंज आ गए। यहां के हालात और बुरे थे।
भर्ती करने के लिए मांगे 50 हजार रुपये
विकास के मुताबिक, जब वो मैक्स पटपड़गंज पहुंचे तो वहां बेड्स ही खाली नहीं थे। परिवार के लोग अस्पताल मैनेजमेंट से नरेंद्र को भर्ती करने की गुहार लगाते रहे। उसकी हालत हर पल के साथ खराब होती जा रही थ्ज्ञी। आखिरकार अस्पताल माना तो मगर कहा कि इमर्जेंसी केस है और 50,000 रुपये पहले जमा करने को कहा। कोई और रास्ता नहीं था। यहीं पर नरेंद्र के कई टेस्ट हुए, कोरोना का भी। 2 जून की सुबह 8 बजे के करीब। उससे पहले तक अस्पताल ने कहा कि नरेंद्र की सुगर बढ़ी है, फेफड़ों में पानी है, किडनी प्रॉब्लम भी है। वो डायलिसिस करना चाहते थे मगर विकास ने मना कर दिया।
रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद बदल गए तेवर
पूरा दिन इंतजार करने के बाद, 3 जून की सुबह 9 बजे के करीब पता चला कि नरेंद्र कोविड-19 पॉजिटिव हैं। इसके बाद तो अस्पताल के तेवर ही बदल गए। ये कहकर इलाज से मना कर दिया गया कि कोविड-19 मरीजों के लिए बेड नहीं हैं। परिवार ने उपाय पूछा तो ताहिरपुर के राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल (RGSSH) रेफर कर दिया। दोपहर दो बजे नरेंद्र को लेकर परिवार वहां पहुंचा तो कहा गया कि जैसी मरीज की हालत है, ICU बेड लगेगा और वो है नहीं। फिर GTB अस्पताल जाने को कह दिया गया। उधर नरेंद्र की हालत बद से बदतर होती जा रही थी।
भागमभाग में चली गई नरेंद्र की जान
एक कोरोना पेशंट को RGSSH से GTB अस्पताल जाने के लिए कोई प्राइवेट एम्बुलेंस तैयार नहीं थी। सरकारी एम्बुलेंस तो आ ही नहीं रही थी। किसी तरह विकास ने एक प्राइवेट एम्बुलेंस वाले को मनाया और शाम 5 बजे GTB पहुंच गए। इलाज शुरू हुआ। परिवार नरेंद्र की हालत देखकर उन्हें वेंटिलेटर पर रखने को कहने लगा मगर अस्पताल ने कहा कि उसकी जरूरत नहीं। तबीयत बिगड़ती चली गई और शाम साढ़े सात बजे के करीब नरेंद्र ने दम तोड़ दिया। इसके बाद भी दो घंटों तक कोई उसके लाश को मॉर्च्युरी ले जाने नहीं आया। आया भी तो एक स्टाफ अटेंडेंट जिसकी मदद परिवार को करनी पड़ी।
साभार Navbharat Times