जैन विश्व भारती में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शनिवार को एक ओर जहां आचार्य महाप्रज्ञ मेडिकल कॉलेज एण्ड हास्पीटल ऑफ नेचुरोपैथी एण्ड योग का लोकार्पण हुआ तो वहीं दूसरी ओर दोपहर में परम पूज्य आचार्यश्री की मंगल सन्निधि और राजस्थान के राज्यपाल श्री कलराज मिश्रा की उपस्थिति में जैन विश्व भारती के 13वें दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन किया गया। इस दीक्षांत समारोह में राज्यपाल महोदय द्वारा मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी को भी पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। इस दीक्षांत समारोह में कुल 71 विद्यार्थियों को गोल्ड मेडेल सहित 4543 इतने विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों में डिग्री और उपाधि प्रदान की गई।
शनिवार को प्रातः अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी महाश्रमण विहार कुछ दूरी पर जैन विश्व भारती परिसर में नवनिर्मित आचार्य महाप्रज्ञ मेडिकल कॉलेज एण्ड हास्पीटल ऑफ नेचुरोपैथी एण्ड योग के परिसर में पधारे। वहां जैन विश्वभारती के पदाधिकारियों तथा भवन निर्माता सहयोगियों ने आचार्यश्री के मुखारविंद से मंगलपाठ का श्रवण कर भवन का लोकार्पण किया। तदुपरान्त आचार्यश्री के मंगलपाठ से जैन विश्वभारती के पदाधिकारियों द्वारा विभिन्न कार्यों का लोकार्पण किया गया।
दोपहर लगभग बारह बजे सुधर्मा सभागर में जैन विश्व भारती के 13वें दीक्षांत समारोह में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में राजस्थान के राज्यपाल श्री कलराज मिश्र, जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व भारत सरकार के संसदीय कार्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल तथा नवी मुम्बई के महापौर श्री संजीव नाईक पहुंचे। राज्यपाल महोदय के साथ उपस्थित गणमान्यों ने आचार्यश्री को वंदन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त करने के मंच पर विराजमान हुए। सर्वप्रथम राष्ट्रगान हुआ, जैन विश्व भारती के कुलगीत का गायन हुआ।
राज्यपाल महोदय द्वारा संविधान की प्रस्तावना की शपथ दिलाई। तदुपरान्त जैविभा के वाइस चांसलर श्री बीआर दूगड़ ने विश्वविद्यालय का परिचय प्रस्तुत करते हुए कुलाधिपति से दीक्षांत समारोह के शुभारम्भ की अनुमति मांगी। दीक्षांत समारोह का शुभारम्भ हुआ तो सर्वप्रथम राज्यपाल श्री कलराज मिश्र, कुलाधिपति, श्री अर्जुनराम मेघवाल, नवी मुम्बई के महापौर श्री संजीव नाईक तथा कुलपति श्री बीआर दूगड़ ने मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी को जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन में पीएडी की उपाधि प्रदान की तो पूरा सभागार जयघोष से गुंजायमान हो उठा। इसमें मुनि कुमारश्रमणजी, समणी मानसप्रज्ञाजी, समणी प्रणवप्रज्ञाजी तथा साध्वी मध्यस्थप्रभाजी को उपाधि प्रदान की गई। तदुपरान्त प्रारम्भ हुए इस उपाधि और डिग्री, मेडल प्रदान करने का क्रम लगभग घण्टे भर चला। इसमें विभिन्न विषयों व विभागों के 71 विद्यार्थियों को गोल्ड मेडेल सहित कुल 4543 विद्यार्थियों को उपाधि और डिग्री प्रदान की गई। जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल ने उपाधि धारकों को बधाई देते हुए देश के विकास में अपना योगदान देने की बात कही।
राजस्थान के राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने अपने अभिभाषण में कहा कि देश के महान संत आचार्यश्री महाश्रमणजी को वंदन करता हूं। जैन विश्व भारती के 13वें दीक्षांत समारोह के कार्यक्रम में उपस्थित होकर प्रसन्न महसूस कर रहा हूं। उपस्थित सभी विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामना करता हूं। आप सभी ने आज जो दीक्षा, शिक्षा ली है, उसका उपयोग जनकल्याण में करें। सीखे ज्ञान का उपयोग भावी जीवन के निर्माण में होता है। स्वस्थ लोकतंत्र का आधार बेहतर शिक्षा होती है। हिटलर और बख्तियार खिलजी ज्ञान के विकास से डरते थे सो उन्होंने पुस्तकालयों को नष्ट किया, जला दिया। विषयों के साथ ग्रंथों का भी परायण कराना भी आवश्यक है। यह संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में महान कार्य कर रहा है। आचार्यश्री तुलसी विरल संत थे, उनकी दृष्टि समय से भी आगे की थी। जिस प्रकार पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की, उसी प्रकार आचार्यश्री तुलसी की कल्पना और प्रेरणा से इस मान्य विश्वविद्यालय सामने आया है। मैं परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रति आभार व्यक्त करता हूं कि आपके आशीर्वाद से यह विश्वविद्यालय छात्रों को मूल्यपरक शिक्षा प्रदान कर रहा है।
युगप्रधान व वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपाधि-डिग्री प्राप्तकर्ताओं को सिक्खापद्म का वाचन करवाते हुए मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि उपाधि को प्राप्त करना जीवन की उपलब्धि होती है, किन्तु ज्ञान का सार आचार होता है। ज्ञान के विकास के साथ व्यक्ति का आचार अच्छा हो ज्ञान में निखार आता है। शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी हो और संस्कारयुक्त ज्ञान प्राप्त तो विद्यार्थी पूर्ण रूप से विकसीत होते हैं। विद्या विनय से शोभित होती है। विद्यार्थियों में विनय के भाव का विकास हो। जैन विश्व भारती के प्रथम अनुशास्ता परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और दूसरे अनुशस्ता परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कार प्रदान किए। जीवन में ज्ञान को निरंतर बढ़ाने के साथ-साथ उसका सम्यक् उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन के उपरान्त मान्य विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री रमेश कुमार मेहता ने आभार ज्ञापित किया। कुलपति ने कुलाधिपति से आज्ञा प्राप्त कर दीक्षांत समारोह के समापन की घोषणा की। पुनः राष्ट्रगान होने के उपरान्त राज्यपाल महोदय ने आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया और अपने गंतव्य को रवाना हो गए।