जैन मंदिर में पूजा पाठ को लेकर दो पक्षों के बीच विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि बात हाथापाई तक पहुंच गई। मारपीट की वीडियो वायरल भी होे गई। इसके बाद दोनों पक्ष थाने पहुंच गए। पुलिस ने दोनों पक्षों की रिपोर्ट पर मामला दर्ज कर लिया।
मक्का गए मदीना गए बनकर आये हाजी ,
ना आदत गयी न इल्लत गयी रहे पाज़ी के पाज़ी।
मध्य प्रदेश के अशोकनगर के श्री शांतिनाथ जैन मंदिर में पूजा अभिषेक के कारण सजातीय विवाद का रूप थाने तक गया। अशोकनगर में प्रबुद्ध जैन समाज हैं और बहुतायत में धार्मिक भावना रखते हैं। ये सब बातें सिद्धांत में हैं ,जब व्यवहारिक धरातल में सिद्धांत मटियामेट हो जाते हैं। जिस धार्मिक जिनालय में अहिंसा ,सत्य ,अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के साथ क्रोध ,मान, माया लोभ के साथ अनेकांतवाद और स्याद्वाद का परिपालन आवश्यक हैं पर जिन्होंने ये सन्देश दिया उनके सामने ही अशांति और शोक का वातावरण बनना का अर्थ हमारे आदर्श मुनि महाराज /आचार्य संघ /आर्यिका संघों/विद्वानों के द्वारा दिए गए प्रवचन ,शिक्षाएं दिए जाने के बावजूद राग द्वेष से मुक्त होना तो बहुत दूर की बात हैं उनको एक क्षण में विस्मृत कर इस प्रकार के प्रसंग उपस्थित होना क्या दर्शाता हैं।
आज समाज नेतृत्व विहीन होती जा रही हैं। नवधनाड्य ने आर्थिक सम्पन्नता की बदौलत अपनी लॉबी बनाकर कमजोर वर्ग को दबा कर अपना वर्चस्व स्थापित करने की होड़ में रहते हैं। आजकल हर मंदिर में ट्रस्ट में पैसा ,पद ,प्रतिष्ठा होने से सबकी नज़र उन पदों पर रहता हैं। वह यदि काँटों का ताज होता तो क्यों उस पद के लिए लड़ते मरते। हो सकता हैं पहले अभिषेक करने के कारण वितंडावाद हुआ होगा। मंदिर एक ऐसा सार्वजनिक स्थान जहां पर सब मर्यादा में आये और स्थापित नियमों का पालन करे। जो पदस्थ पदाधिकारी अपने पद का नियमानुसार पालन करे और सबको सम्मान दे। जहां तक हो सर्वसम्मति से निर्णय ले और सबकी सहमति से काम करे।
बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता। जहाँ धुआं होता हैं वहां आग जरूर होगी। ऐसे घटना जैन समाज जैसे बौद्धिक समाज के लिए अत्यंत निंदनीय और शर्मनाक हैं। इस प्रकरण का परिक्षण कर दूरगामी ऐसे परिणामों से बचाना या बचना होगा।
— वैद्य अरविन्द प्रेमचंद जैन