क्षेत्र प्रबंधक पवन कुमार जैन ने बताया कि भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा जी को सुसज्जित रथ पर विराजमान कर प्रातः 6 बजे बौंसी स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर से गांधी चौक , हनुमान चौक , वापस मधुसूदन मंदिर , पंडा टोला , बारामती जैन मंदिर , पापहरणी रोड के रास्ते मंदार पर्वत तलहटी स्थित जैन मंदिर तक भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी।
तत्पश्चात जैन श्रद्धालु पारंपरिक केसरिया परिधान में प्रतिमा जी को अपने मस्तक पर लेकर मंदार पर्वत शिखर स्थित जैन मंदिर तक जाएंगे।
जहां विधि विधान पूर्वक भगवान वासुपूज्य का महामस्तकाभिषेक , जलाभिषेक , शांतिधारा व विशेष पूजन-अर्चना के उपरांत जैन अनुयायी धूमधाम के साथ भव्य निर्वाण लाडू चढ़ायेंगे।
निर्वाणोत्सव की तैयारी पूरी।
भगवान वासुपूज्य निर्वाण महोत्सव के आयोजन व पर्युषण महापर्व को लेकर मंदारगिरी में धूम है।
इस आयोजन की तैयारी मंदारगिरी दिगम्बर जैन प्रबंधन द्वारा कर ली गई है। दिगम्बर जैन मंदिर परिसर को आकर्षक ढंग से सजाया गया है और रथ का रंग-रोगन कर तैयारी पूरी कर ली गई है।
इस अयोजन पर काफी संख्या में जैन तीर्थयात्रियों का सम्मिलित होने की संभावना है।
आज ही के दिन भगवान वासुपूज्य को मंदार से प्राप्त हुआ था मोक्ष।
मालूम हो कि भगवान वासुपूज्य स्वामी का तप , ज्ञान व निर्वाण स्थली मंदारगिरी की पावन धरा ही है।
बताया गया कि भाद्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को मंदारगिरी पर्वत शिखर के चोटी से ही भगवान वासुपूज्य को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
नौवें दिन मनाया गया उत्तम आकिंचन्य धर्म , उत्तम ब्रह्मचर्य के साथ पर्व का आज समापन।
जैन धर्मावलंबियों के दस दिवसीय महापर्व दशलक्षण के नौवें दिन बुधवार को उत्तम आकिंचन्य धर्म की आराधना की गई।
प्रातः बेला जिनालय में विधिवत रूप से नित्य अभिषेक , शांतिधारा व विशेष पूजा-पाठ किया गया।
इस दौरान भक्तिपूर्ण वातावरण में मंगलाष्टक स्त्रोत्र , मंगल पाठ , विनय पाठ के पश्चात जैन श्रद्धालुओं ने उत्तम आकिंचन्य धर्म को अंगीकार कर समुच्चय पूजन , रत्नत्रय पूजा , सोलहकारण पूजा , दसलक्षण धर्म पूजा श्रद्धापूर्वक किया।
वहीं संध्या बेला में भजन , महाआरती का आयोजन किया।
इस अवसर पर देश के अन्य प्रांतों से पहुंचे जैन तीर्थयात्रियों के अलावे क्षेत्र प्रबंधक पवन कुमार जैन , उपप्रबंधक राकेश जैन , उपेंद्र जैन , राहुल जैन सहित विपिन जैन , प्रवीण जैन , नीतू जैन , शिल्पी जैन , खुशी जैन , मिंकू जैन आदि काफी संख्या में जैन श्रद्धालु शामिल हुए।
मैं और मेरा का त्याग करना ही है आकिंचन्य धर्म।
मीडिया प्रतिनिधि प्रवीण जैन ने बताया कि त्याग करने के पश्चात त्याग के अहं का भी त्याग करना आकिंचन्य धर्म है। ‘ मैं ‘ और ‘ मेरा ‘ ये भी एक परिग्रह है जिसे त्याग करना आकिंचन्य धर्म है।
उत्तम आकिंचन्य धर्म हमें मोह को त्याग करना सिखाता है। मोक्ष महल तक पहुंचने के लिए आत्मा के भीतरी मोह का त्याग करके ही आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है। सब मोह पप्रलोभनों और परिग्रहों को छोड़कर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।
इस संसार में हमारा कुछ भी नही है यहां तक कि यह शरीर भी हमारा नही है ऐसा विचार करते हुए हमें आकिंचन्य धर्म अंगीकार करना चाहिए।
— प्रवीण जैन (पटना)