इन जैन मुनि ने 52 सालों से नहीं ली शयन मुद्रा, मेडिकल साइंस के लिए भी हैरानी


जैन संत शीतल मुनि पिछले 52 वर्षों से एक बार भी लेटे नहीं हैं। वे रात में बैठकर 4 से 6 घंटे की ही नींद लेते हैं। रायपुर में चातुर्मास करने आए जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी संप्रदाय के शीतल मुनि ने जीवनभर के लिए आड़ा आसन यानी शयन मुद्रा में आने का त्याग लिया है। 1948 में जोधपुर में जन्मे शीतल मुनि ने 1970 में यानी 22 साल की उम्र में गुरु हस्तीमन से जैन दीक्षा स्वीकार की थी।

दीक्षा के 2 साल बाद अपने गुरु आचार्य जयमल की जीवनी पढ़ते हुए उन्हें कठोर तपस्या की प्रेरणा मिली। इसके बाद से उन्होंने लेटने त्याग कर दिया। उन्होंने छह माह तक प्रवचन, आहार एवं नित्य कर्म के अतिरिक्त निरंतर खड़े रहने की साधना भी की है। 76 वर्ष के शीतल मुनि हफ्ते में दो दिन पूर्ण रूप से मौन रहते हैं और हर दिन 5 घंटे मौन रहते हैं। उन्होंने 101 दिन, 61 दिन, 54 दिन, 44 दिन, 26 दिन की अखंड मौन साधना भी की है।

जैन संत शीतल मुनि प्रतिदिन दोपहर 12 से 2 बजे तक धूप में आतपना लेते हैं। धूप में साधना करने का यह क्रम गर्मियों में भी निरंतर चलता है। ठंडी के दिनों में जैन संत के वस्त्र के अतिरिक्त केवल एक पतली चादर में ही गुजारा करते हैं। हफ्ते में दो से तीन दिन केवल गर्म पानी पीकर उपवास करते हैं। 4 से 5 घंटे की नींद के अतिरिक्त दिन में 10 से 12 घंटे स्वाध्याय, ध्यान और अध्ययन में बीतता हैं।

अकेले ही पूरे भारत में पैदल विचरण करने के साथ शांति और अहिंसा का प्रचार करते हुए शीतल मुनि जैन संतों की आवश्यक दिनचर्या का पालन करते हैं। इनमें इलेक्ट्रिक वस्तुओं के उपयोग का त्याग, सूर्यास्त के बाद भोजन और पानी का त्याग। भिक्षा मांगकर आहार लेना। हर दिन सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के बाद सूत्र विधि के साथ संसार के समस्त जीवों से क्षमा मांगना जैसे सभी नियम शामिल हैं।

अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. पंकज धाबलिया का कहना है कि कोई व्यक्ति 52 वर्षों से न लेटा हो, यह मेडिकल साइंस और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अचरज की बात है। हमारे देश में संत परंपरा में कई अचंभे देखने को मिलती है। जैन मुनियों की संयमित दिनचर्या और आहार विहार में 52 साल की कठोर तपस्या और स्वस्थ जीवन यह संभव दिखाई देता है।


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