विवाह समारोह में रात्रि भोजन और अभक्ष्य भक्षण का पूर्ण तरह निषेध रखना चाहिए: आचार्य पुलक सागर जी


बांसवाड़ा। आचार्य श्री पुलक सागर  जी महाराज  ने अपने प्रवचन में कहा कि आजकल विवाह संस्कार एक दिखावा होकर  रह गया है। हमें अपने परिवार में होने वाले विवाह समारोह में रात्रि भोजन  और अभक्ष्य भक्षण का पूर्ण तरह निषेध रखना चाहिए। हमारे शुद्ध शाकाहारी जैन  भोजन का मेनू भी इतना समृद्ध सुस्वादु है कि हमारे आयोजनों में अन्य किसी  वैरायटी के भोजन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । खाना बनाने वह परोसने के सारे  बर्तन से सुनिश्चित गारंटी वाले कैटरर्स के पास से मंगवाई जाने चाहिए ।  जिसका यह संकल्प हो कि वह शुद्ध जैन भोजन वाले के अलावा किसी के यहां वहां  बर्तन नहीं देगा । शादियों में बर्तन प्रदाता ऐसा ही चुना जाए जिसका यह  संकल्प हो कि वह कभी ऐसे लोगों की पार्टियों की कैटरिंग ही नहीं करेगा जो  शुद्ध शाकाहारी भोजन करने वाले नहीं होंगे।

आचार्यश्री  कटाक्ष करते हुये कहा कि आजकल जैन  शादियों में भी अश्लील व फूहड़ आर्केस्ट्रा का रिवाज बहुत बढ़-चढ़कर हो गया  है। मनोरंजन के नाम पर हम अपने धर्म व संस्कृति को भुलाकर गंदे वह कानफोड़  डीजे व ढोल नगाड़ों को महत्व देने लगे हैं। इससे हमारे बच्चे क्या सीखेंगे।  धार्मिक गरिमा व नैतिकता बनी रहे। इसलिए जैन उनमें भी मुमुक्षु संस्कार  वाले भाई-बहनों को ही गीत संगीत की प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया जाना  चाहिए। आर्केस्ट्रा के बजाय भारतीय संस्कृति में रचे बसे गीतों की  प्रस्तुति हो तो सोने पर सुहागा होगा। विवाह के पवित्र रस्म में आतिशबाजी  चलाकर जो हिंसा का कृत्य किया जाता है उसे तो हरगिज ना करें । हमारे  आधुनिकता वादियों एवं धन पतियों ने तो हमारे विवाह संस्कारों में ऐसी कई कुरीतिया प्रारंभ कर दी है। आचार्यजी ने कहा कि जिसका वर्णन करने तक में  मुझे शर्म का अनुभव होता है । लेकिन हम आजकल बड़ी शान से इन कुरीतियों का  बड़ी बड़ी स्क्रीन पर प्रदर्शन कर अपने आयोजनों को हाई प्रोफाइल साबित करने  में अपनी शान समझते हैं।

मुझे एक श्रद्धालु ने एक जैन शादी का अपना अनुभव  साझा करते हुए बताया कि रात्रि भोजन के दौरान अल्पायु की लड़कियों को  वेटर्स के रूप में बुलाकर अपने रहीसी का विकृत प्रदर्शन किया गया। यदि  विवाह संस्कारों को शुद्ध और प्रेरणादायीं बनाना है और इन पलों की  स्मृतियों को सदैव के लिए ही रखना है तो उससे दूर रहना ही होगा।

 

— अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

 


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