जैन जीवन शैली में युग-युगों से आहार शुद्धि का विशेष महत्व रहा है। आहार का सम्बन्ध आरोग्य से है और आरोग्य का सम्बन्ध जीवन से जुडा हुआ है, वह किसी सम्प्रदाय से जुडा हुआ नहीं है।
भगवान महावीर के सामने आत्मा प्रधान थी, शरीर गौण था। आदि से अन्त तक अहिंसा की परिक्रमा करने वाली चेतना उसी स्वास्थ्य को, उसी आहार को मूल्य दे सकती है जिसके कण-कण में आत्मा की सहज स्मृति हो। जैन आहार पद्धति हिंसा पर नहीं अहिंसा पर, विषमता पर नहीं समता पर, साधनों पर नहीं साधना पर, दूसरों पर नहीं स्व पर वह रोग के लक्षणों की अपेक्षा आरोग्य के मूल कारणों पर आधारित है। जो शरीर के साथ-साथ मन एवँ आत्मा के विकारों को दूर करने में सक्षम है।
यह अहिंसकाहार पद्धति प्रकृति के सिद्धान्तों पर आधारित होने के कारण अधिक प्रभावशाली वैज्ञानिक, मौलिक एवं निर्दोष होने के साथ-साथ जैन सिद्धान्तों की रक्षक होती है। कोरोना महाकाल में खानपान की शुद्धि पर विशेष सन्देश दिया है। खानपान की शुद्धि की महत्वपूर्ण भूमिका इस महा काल में चारो ओर देखने में आयी, बाजार की बनी वस्तुओं से दूरी बनायी गयी। हमारी गृृहणियों ने भी तरह-तरह की रेसेपियों के माध्यम से यह बता दिया कि घर की बनी खाने की वस्तुएं ही शुद्ध होती हैं।
हिंसक आहार को इन अक्षरों से ही भली भांति समझा जा सकता है –
अ – अमृृतमय, हिं – हिंसा रहित, स- सन्तुलन क – कल्याणकारी, आ – आह्मदकारी, हा – हाजमेदार, र- रसपूर्ण
अहिंसकाहर से लाभ, महत्व, गुण-प्रकृति ने मानव शरीर को अहिंसकाहार के योग्य बनाया है जिससे वह स्वस्थ्य, सुन्दर, सबल व सुखी रह सकता है।
अहिंसकाहार सहज, शक्तिशाली स्वास्थ्यकारी है। इससे मनुष्य जीवन विशुद्ध रहता है, यह नई उमंगें, तरंगें प्रदान करता है, सुरभित वातावरण बनाता है, मानवता प्रदान करता है, सजगता प्रदाता, कम खर्चीला, पर्यावरण रक्षक और करूणा के विचार प्रदान करता है। यह औषधि प्रदाता है, सुकून प्रदाता है, मानवता पोषक है, खुशहाली प्रदाता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है जो कोरोना की सुरक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण है।
मैं यहाँ यह भी बताना उचित समझता हूँ कि हमारे देश के लब्ध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रो0 नीलधर ने परीक्षण के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि अहिंसक भोजन, शक्ति, स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त करने में सहायक होता है।
प्रो. रिचेट ने प्रायोगिक आधार पर यह प्रमाणित किया कि अहिंसक आहार रक्त-रस सम्बन्धी रोगों को उत्पन्न होने से रोकता है तथ रोग सक्रमण से रक्षा करने योग्य बनाता है। यह कटु सत्य है कि अहिंसक आहार ही महत्वपूर्ण आहार है।
खानापान की शुद्धि सर्वप्रथम अपने आप में ही निहित है। हमारे वर्तमान जीवन में खानपान अशुद्धता का साम्राज्य बढ रहा है तथा जाने- अनजाने में फास्ट फूड एवँ विदेशी व्यंजनों के स्वादों में पड़ कर देश का बडा प्रतिशत युवा अपने खानपान को अपवित्र बनाकर मन को भी अशुद्ध करता हुआ पाप का संचय कर रहा है।
इस कार्य पर मैं कहना चाहता हूँ कि हमारे ही समाज की महिलाओं की अनदेखी एवं आलसी वृृत्ति का भी बहुत बड़ा योगदान देखा जा रहा है। जो नारी अपने घर की बेटी-बहन-माँ-बहू- आदि के रूप में घर के अन्दर नन्हें बच्चों से लेकर वृृद्ध माता-पिता, सास-ससुर सबके लिए सवेरे से ताजा दूध, और नाश्ता, उनके साथ ममता-प्रेम और अपनत्व का रस घोलकर सबको परोसती थी, वही नारी अब रेडीमेड़ पिज्जा-बर्गर-डबलरोटी-बिस्किट आदि लेकर बच्चे-पति आदि का टिफिन तैयार करती हैं‘‘। तब आप स्वंय चिन्तन करें कि ये केवल पेट भरने का साधन ही तो रहा, उस टिफिन के भोजन में कोई ममता या प्रेम-अपनत्व का रस कहा घुल गया ? इस पर हमारी बहनों को गहराई से चिन्तन करना होगा, अन्यथा खानपान की शुद्धि आपके घर से कोसों दूर चली जायेगी जिसे वापिस लाने में आप स्वंय समर्थ नहीं हो पायेंगी।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि अहिंसक आहार ही जगत में सहज प्राप्य, सर्व सुलभ और सस्ता है मौसम के अनुरूप टमाटर, गाजर, धनिया पत्ती, अन्न, फल, मेवे, दुग्ध और दुग्ध से बनी वस्तुओं में क्षार और खनिजों की पर्याप्त मात्रा में पूर्ती करती हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण जीव जगत के लिए विकास और आत्मिक-आधयात्मिक उन्नति का भी कारण है।
ष्शुद्ध भोजन करें और अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखे और कोरोना जैसी महामारी से अपने आप को सुरक्षित रखें।
अब यहाँ विशेष महत्वपूर्ण बिन्दु है अहिंसक आहार शुद्ध रहे। जैसा कि आप और हम सब आये दिन सुनते हैं, पढते हैं, सोशल मीडिया मंे भी देखते है कि मिलावट खोर निरन्तर अपने कृृत्य में सफल हो रहे हैं। इस ओर सामाजिक जन चेतना की आवश्यकता है। केन्द्र सरकार की ओर से एक न्यायालय में दाखिल हलफनामा में स्वीकारा है कि देश में 68 प्रतिशत से अधिक दूध खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरणों के मानक के अनुरूप नहीं है।
मिलावट खोरों के होसले बुलन्द होने का यह भी एक बडा कारण है कि प्रशासन के पास जाँच प्रयोगशाला व जाँच करने वाला अमला कम है। मिलावट खोरों के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें सभी भलीभांति जानती है। सरकार ने उचित व्यवस्था भी की है लेकिन उस व्यवस्था को सुधार करने की अत्यन्त आवश्यकता है।
मिलावट के कारण पदार्थों की प्रकृति, गुण और पोष्टिकता में भी काफी बदलाव आते हैं। प्रायः मिलावट में हानिकारक पदार्थों की मिलावट की जाती है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है, यह सही है कि मिलावट खोर खाने की वस्तुओं में जहर मिलाने का कृृत्य कर रहे हैं, जिसे कोई भी सरकार हो केन्द्र की हो या राज्य की हो किसी भी कीमत पर माफ नहीं किया जाना चाहिए।मिलावट के विरूद्ध आवाज उठनी चाहिये, जनता को सर्तक होना चाहिए राज्य सरकारों व केन्द्र सरकार को ठोस कानूनी प्रावधान तय करने चाहिए।
मध्यप्रदेश सरकार ने 9 नवम्बर 2022 से मिलावट से मुक्ति अभियान की शुरूआत की, राजस्थान सरकार ने 51 हजार रू. का ईनाम रखा है तथा 181 नम्बर भी जारी किया है, जिस पर कोई भी व्यक्ति शिकायत कर सकता है, ‘‘शुद्ध के लिए युद्ध‘‘ अभियान भी चलाया इन सब कार्यो में ठोस कार्यवाही की आवश्यकता है, जनता को ऐसे महत्वपूर्ण बिन्दु पर जागरूकता की आवश्यकता है। सरकारें ठोस कदम उठाये और भ्रष्टाचारता को दूर रखे तभी यह अभियान सफल हो सकता है। जिस प्रकार अपने देश की रक्षा राष्ट्रीय स्तर पर सेना की आवश्यकता है ठीक उसी प्रकार मिलावटखोरी को समाप्त करने की आवश्यकता है। जनता को स्वार्थ व जागरूक होकर मिलावटखारों भ्रष्ट लोगों के विरूद्ध आवाज उठाकर इसे रोकने की आवश्यकता है।
— उदयभान जैन