जैन धर्म के 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याणक दिवस पर लाडू चढ़ाने के लिए मधुवन में देश भर से आये श्रद्धालुओं के हुजूम पहुंचा हुआ था। पारसनाथ पर्वत की 4750 फीट ऊंचाई होने के बावजूद श्रद्धालुओ का उत्साह कम नहीं हो रहा था, वहीं सुहाने मौसम ने भी श्रद्धालुओं का खूब साथ निभाया। श्रद्धालुओं में बच्चे, बूढ़े, युवा हर आयु वर्ग के लोग पहुंचे थे, नौ किमी की कठिन चढ्राई पूरी कर भगवान पार्श्वनाथ को निर्वाण लाडू चढ़ाकर भक्तगण स्वयं को धन्य मान रहे थे। वहीं श्रद्धालुओं के भारी दवाब एवं यात्रा को सफल बनाने हेतु जैन संस्थाएं और प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहे।
पार्श्वनाथ टोंक पर श्रीजी की पूजा-अर्चना की गयी। इससे पूर्व श्रीजी को मधुबन स्थित श्री दिगम्बर जैन बीसपंथी कोठी से गाजे-बाजे के साथ पार्श्वनाथ टोंक ले जाया गया। श्रद्धालुओं की टोली श्रीजी की प्रतिमा को सर पर रखकर ले गये। टोंक पर पहुंचते ही पूजा का सिलसिला शुरू हो गया साथ ही मंत्रोउच्चारण से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। आलम ये था कि टोंक पर स्थित मंदिर में पैर रखने की जगह नहीं थी। मंगलवार को भगवान पाश्र्वनाथ का मोक्ष कल्याण को लेकर सोमवार की पूरी रात मधुबन में पूरी तरह चहल-पहल रही।
सोमवार रात 08.00 बजे से ही भक्तों की टोलियों ने पर्वत पर चढ़ना शुरू कर दिया था और ये सिलसिला मंगलवार प्रात: 07.00 बजे तक लगातार चलता रहा। जय पारस-जय पारस के नारों से पूरा पर्वत गुंजायमान हो रहा था। पूरी रात पैदल वंदन मार्ग में श्रद्धालुओं का चहलकदमी जारी रही और दुकाने भी रात भर खुली रही। आमतौर पर रात में विभिन्न संस्थाओं के गेट बंद हो जाते हैं किंतु वह भी पूरी रात खुले रहे और श्रद्धालुओं की आवाजाही होती रही। कई बुजुर्ग श्रद्धालु डोली के सहारे वंदना कर रहे थे। ऐसे में डोली वालों की भी अच्छी खासी संख्या थी।
इस अवसर पर किसी भी श्रद्धालु के साथ पर्वत की वंदना करते समय कोई अनहोनी न हो, इसके लिए पूरे पर्वत पर जगह-जगह प्राथमिक चिकित्सा केंद्र स्थापित किये गये थे। इसी के साथ डाक बंगला समेत अत्य जगहों पर अल्पाहार एवं भोजन की व्यवस्था भी की गयी थी। पुलिस प्रशासन पूरा चुस्त-दुरुस्त दिखायी दिया। पूरे महोत्सव के दौरान पानी, ट्रैफिक एवं सुरक्षा की मुकम्मल व्यवस्था की गयी थी और पुलिस के जवान लगातार गश्त कर रहे थे।