व्यक्ति के स्वयं का पैदा किया पुण्य ही वैभवता को प्राप्त कराता है – Acharya Vidyasagar


टीकमगढ़ के पपौरा जी अतिशय क्षेत्र में पिछले एक माह से आचार्य विद्यासागर जी ससंघ विराजमान हैं। उनके दर्शकों हेतु पूरे देश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंच रहे हैं और पपौरा जी अतिशय क्षेत्र का वातावरण धर्ममय बना हुआ है। आचार्यश्री अपने प्रवचनों द्वारा श्रद्धालुओं को धर्म और मुक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं। सोमवार प्रात: 05.30 बजे आचार्यश्री मंच पर विराजित हुए। पाद-पक्षालन के बाद पूजन का सौभाग्य प्रथ्वीपुर से आई महिला मंडल को सौभाग्य मिला। प्रदीप जैन बम्होरी नेन बताया कि देश के कई स्थानों से श्रद्धालु पपौराजी पहुंचे, जिसमें भोपाल, बेगमगंज, छतरपुर एवं खजुराहों जैन समाज के लोगों ने आचार्यश्री श्रीफल भेंट किया। श्री सुयशमति माता जी द्वारा मंगलाचरण पढ़ा गया।

उसके बाद आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि किसी भी व्यक्ति का स्वयं का पैदा किया हुआ पुण्य ही वैभव को प्राप्त कराता है। यह उसके पुण्य कर्मो का प्रतिफल होता है, जो वैभवता की ओर लेता चला जाता है। आचार्यश्री ने इसे एक उदाहरण के तौर पर बताया कि एक राजा अपने नगर भ्रमण हेतु घोड़े पर बैठा, उसके बाद घोड़े से उतर पर हाथी पर बैठा दिया गया, हाथी से उतरकर राजा को पालकी में बैठा दिया जाता है। उसके बाद पालकी से उतरने के बाद उसके सेवक राजा के हाथ-पांव दबाने लग जाते हैं। कौतूहलतावश एक मित्र ने पूछ बैठा कि राजा तो एक कदम भी पैदल नहीं चले फिर भी सेवक राजा के हाथ-पैर क्यों दबा रहे हैं। आचार्यश्री जी कहते हैं कि यही व्यक्ति का पुण्यउदयकाल होता है, जो उसने कर्म किये हैं उसी का फल/वैभव उसे मिल रहा है। अध्यात्म की बात करते हैं कर्मआत्मा का परिगमन सामने आता ही है।


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