आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज और मुनि विशल्य सागर जी महाराज का 20 वर्षों बाद हुआ मिलन


दिगम्बर जैन श्रमण परम्परा के राष्ट्रसंत गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य अध्यात्मयोगी चर्या शिरोमणि आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ और श्रमण मुनि श्री 108 विशल्य सागर जी महाराज ससंघ का मोक्ष नगरी गया में रविवार को भव्य महामिलन हुआ। आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज सहित 24 पिच्छी निर्ग्रन्थ जैन साधुओं का गया में पहली बार भव्य मंगल प्रवेश हुआ। जिनकी भव्य अगवानी मुनि श्री विशल्य सागर जी 2 पिच्छी ससंघ सहित काफी संख्या में जैन श्रद्धालुओं ने श्रद्धापूर्वक किया। इस अवसर पर साक्षी बनने आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। मुनियों के नगर प्रवेश व शीतकालीन वाचना को लेकर जैन समाज के बीच खासा उत्साह देखने को मिल रहा है।

महामिलन को देख भाव-विभोर हो गए श्रद्धालु

गया क्लब में जैन संतों के जत्था का महामिलन की समारोह आयोजित की गई। जहां दो गुरुभाइयों ने गले मिलकर एक-दूसरे का अभिनंदन किया। उसके पश्चात मुनि श्री विशल्य सागर जी ससंघ ने आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज का परिक्रमा लगाकर चरण वंदना, पाद प्रक्षालन व शास्त्र भेंट किया। इस महामिलन की अलौकिक दृश्य के भावुक पल को देख कर श्रावक भाव-विभोर हो गए। इस दौरान भक्तों का जनसमूह जय जय गुरुदेव का जयघोष हर्षोल्लासपूर्वक कर रहे थे। तालियों की गड़गड़ाहट से मिलन परिसर गूंज उठा। बता दें कि करीब 20 वर्षों बाद दोनों गुरुभाइयों का मिलन हुआ।

मानव श्रृंखला बना संतों का किया अभूतपूर्व अगवानी, निकली शोभायात्रा

इसके उपरांत यहां से दोनों गुरुभाइयों के ससंघ का धर्म चरण गया शहर के रमना रोड स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर के लिए प्रस्थान किया। इस अवसर पर गया क्लब से काशीनाथ मोड़, कचहरी, अहिंसा स्तम्भ, जीबी रोड, बजाजा रोड, रमना रोड होते हुए जैन मंदिर तक जैन समाज की ओर से दिगम्बर मुनियों के स्वागत में गाजे-बाजे के साथ लहराते पंचरंगे जैन ध्वज के बीच भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इस दौरान जैन संदेशों, जयकारा गुरुदेव का जय जय गुरुदेव, नमोस्तु शासन जयवंत हो के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हुआ। पूज्य गुरुदेव के नगर प्रवेश पर महिलाएं मस्तक पर मंगल कलश, हाथ में ध्वज लिए मानव श्रृंखला बनाकर अभूतपूर्व स्वागत की। शोभायात्रा में भक्तों का समूह उत्साहपूर्वक भक्ति नृत्य, झूमते-नाचते चल रहा था। जिसमें पारंपरिक परिधान पहने पुरूष, महिलायें व बच्चे सभी गुरुभक्त ने जैन मुनियों का आशीर्वाद लिया। इस दौरान रास्ते में जगह-जगह आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन, मंगल आरती कर श्रद्धालुओं ने मुनि संघ का स्वागत किया।

जैन मंदिर में आयोजित हुए विभिन्न कार्यक्रम

दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य श्री ससंघ के पावन सानिध्य में जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक, शांतिधारा किया गया। शांतिधारा का उच्चारण श्री विशुद्ध सागर महाराज के श्री मुख से हुआ। इसके उपरांत जैन भवन में धर्मसभा का आयोजन हुआ। जहां आकर्षक सजे भव्य मंच पर जैन संतों का मनोरम समोशरण लगा। जिसे देख जैन श्रद्धालु धर्म की बहती गंगा में डूब आनंदित हो उठे। धर्मसभा का शुभारंभ मंगलाचरण, चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन व मंचासीन पूज्य गुरुदेव को शास्त्र भेंट कर हुआ। तत्पश्चात श्रमण मुनि श्री विशल्य सागर जी महाराज का अभिनंदन प्रवचन हुआ। जिस दौरान मुनि श्री ने आचार्य विशुद्ध सागर जी के व्यक्तित्व व गुरु चर्या पर प्रकाश डालते हुए भावुक हो गए। इसके पश्चात आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने धर्मसभा को अपने मंगल प्रवचन से संबोधित किया। इस अवसर पर स्थानीय जैन समाज के साथ देश के विभिन्न प्रांतों से सैंकड़ो की संख्या में गुरुभक्तों का जुटान हुआ।

15 दिनों तक लगेगा दिगम्बर साधुओं का महासमागम

बताते चले कि जैन आचार्य श्री ससंघ के भव्य स्वागत में रंगोली, बैलून से सजे तोरण द्वार, झंडे-पताके आदि से नगर को आकर्षक सजाया गया था। गया शहर में 26 जैन संतों का लगभग 15 दिनों का महासमागम लगने जा रहा है। जहां जैन समुदाय को आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज का शीतकालीन वाचना में दिव्य देशना सुनने का धर्म लाभ मिलेगा। विशाल ससंघ को देख बस टक-टकी लगाए नगरवासी देखते रह गए। गुरुदेव का दर्शन , आशीर्वाद , वात्सल्य पाकर जन-जन का मन प्रफुल्लित हो गया।

तीर्थराज सम्मेद शिखर जी के लिए चल रहा पदयात्रा

गुरु भक्तों ने कहा कि दिगम्बर जैन साधुओं की तप, त्याग, साधना देख रोम-रोम पुलकित हो गया। धन्य है ऐसे साधक जिन्होंने अनेक उपसर्गों पर विजयी प्राप्त कर जिनशासन के धर्म प्रभावना में कठिन साधना कर रहे है। मालूम हो कि जैन संतों का जत्था सत्य, अहिंसा, शाकाहार, जियो और जीने दो आदि संदेशों को लेकर कई राज्य होते हुए अनेक तीर्थ और धर्म स्थलों की मंगल पदयात्रा करते हुए हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर चातुर्मास उपरांत वैशाली से गया जी पधारे है। यहां प्रवास के बाद पंचतीर्थ व श्री सम्मेद शिखर जी के लिए पदविहार होगा।

 

— प्रवीण जैन (पटना)


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