बाड़मेर । कुशल कान्ति-मणि प्रवचन वाटिका, सुखसागर नगर कोटडिया-नाहटा ग्राउण्ड में परम पूज्य खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिन मणिप्रभसूरीष्वर के शिष्य परम पूज्य मुनि मनितप्रभसागर जी म.सा. ने भव्य जीवों को संबोधित करते हुए कहा प्रवचन श्रवण की कला कैसी हो ? प्रवचन कैसे सुनना?
प्रतिदिन हमारे द्वारा विविध-विविध कलाओं का कार्य निरंतर किया जाता है। जिसमें पाक कला, लेखन कला, शिल्प कला इत्यादि कलाएं से संबंधित होती है परंतु इन सब कलाओं में से एक कला ऐसी है जिसका बोध अब तक नहीं हो पाया और वह कला है-श्रवण कला, प्रवचन सुनने की कला। शब्दों की शक्ति अपने आप में असीम है क्योंकि अणु-परमाणु जैसे विस्फोटक पदार्थों से भी अधिक शक्ति शब्दों में होती है क्योंकि शब्द हृदय बदलते हैं सब विचार बदलते हैं शब्द ही है जो हमारे मन को स्थिर रखते हैं। गुरु भगवंतों द्वारा प्रवचनों के माध्यम से फरमाए गए शब्दों को हम अपने भीतर में इसीलिए नहीं उतर पा रहे हैं क्योंकि हम जीवो में विवेक का सर्वथा अभाव है।
गुरू भगवंत ने प्रवचन का महत्व समझाते हुए कहा कि प्रवचन अर्थात प्रकृष्ट वचन। जिसके वचन पहले आचार में लाए गए हो। फिर लोगों तक पहुंचाए गए हो उसे कहते है प्रवचन।
साधु साध्वी भगवंत कभी भाषण नहीं देते वे प्रवचन देते हैं क्योंकि जिस जीवन को वह स्वयं जीते हैं जिन आचारों का वे स्वयं पालन करते हैं उन्हीं आचारों को उन्हीं विचारों को जन जन तक पहुंचाते हैं। प्रवचन श्रवण करना प्रत्येक श्रावक-श्राविकाओं के लिए अत्यंत ही आवश्यक है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक मात्र प्रवचन जिनवाणी ही एक ऐसा माध्यम है जिससे हमें जिन आगमों का, जिनालय का, जिनकत्य का, जिन प्ररूपित सिद्धांतों का। जिन प्रतिमा का तथा जिन-प्ररूपित विविध-विविध क्रियाओं का बोध होता है। इसलिए कहा है कि जिनवाणी से बढ़कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं।
प्रवचन एक टीचर है जो जीवन जीने की कला सिखाता है। प्रवचन एक डॉक्टर है जो जीवन के अनेक दोषों रूपी बीमारी को दूर करता है। प्रवचन एक माली है जो जीवन में नम्रता का पुष्प खिलाता है । प्रवचन एक मांझी है जो संसार-सागर से तिराने का काम करता है।
प्रभु का प्रवचन श्रेणिक महाराजा ने एक बार सुना समकित प्राप्त कर लिया। प्रभु का प्रवचन अति मुक्तक ने एक बार सुना संयम जीवन को अंगीकार कर लिया और प्रभु का प्रवचन 500 तापसों ने एक ही बार सुना और सिद्धि के सोपान को प्राप्त कर लिया।
पूज्य मुनि प्रवर ने फरमाया कि जन्मो-जन्म से हमें प्यास लगी है बाहरी पदार्थों को प्राप्त करने की, सांसारिक सुख-साधनों को प्राप्त करने की। जिसके फलस्वरुप हम निरंतर संसार-सागर में 84 के चक्कर में भटक रहे हैं। इन सबसे दूर होकर सांसारिक प्रपंचों को त्याग कर इस मानव जीवन को सफल बनाने हेतु अब हमें प्यास लगनी चाहिए-आत्मा की। हमें प्यास होनी चाहिए-परमात्मा बनने की। हमें प्यास होनी चाहिए-स्वाध्याय करनंे की ।हम प्यास चाहिए अपने भीतर तक पहुंचने की। बाहर की प्यास सांसारिक सुखों की प्यास को बुझाने का एकमात्र माध्यम है-प्रवचन श्रवण करना। न अपितु श्रवण करना बल्कि उसका चिंतन मनन करना और अपने आचरण में उतारना।
खरतरगच्छ संघ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष रतनलाल संखलेचा व सदस्य रमेष धारीवाल ने बताया कि कुषल कांति मणि प्रवचन वाटिका में प्रतिदिन प्रातः 6.30 से 7 बजे तक स्वाध्याय कक्षा (जैन जीवन शैली ), 9 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 3 से 4 बजे तक तत्वज्ञान कक्षा प्रतिदिन रहेगी।
शनिवार को महाबल मयणासुन्दरी ग्रन्थ को मुनि भगवंत को वोहराने का लाभ श्रीमती लूणीदेवी धर्मपत्नी नेमीचन्दजी संखलेचा परिवार ने लिया। जिनका संघ द्वारा बहुमान किया गया।
रविवार को माँ की ममता, माँ की समता पर विषेष प्रवचन रहेगा।
–केवलचन्द छाजेड़