बिहार के नालंदा जिले में स्थित पावापुरी सिद्ध क्षेत्र है। जैन धर्मावलंबियों के लिये एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने निर्वाण यहीं से प्राप्त की थी। पावापुरी के मुख्य मंदिरों में से एक जल मंदिर है। यहां भगवान महावीर ने मोक्ष पद को प्राप्त किया था।
लगभग 2600 वर्ष पूर्व प्राचीन काल मे पावापुरी मगध साम्राज्य का हिस्सा था। जिसे मध्यम वापा या अपापुरी कहा जाता था। मगध शासक बिम्बिसार का पुत्र आजातशत्रु जैन धर्म के अनुयायी थे और भगवान महावीर स्वामी के समकालीन थे।
यह माना जाता है कि भगवान महावीर को यहीं जलमन्दिर से मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहां के जल मंदिर देखने योग्य हैं। जल मंदिर के नाम से ही पता चलता है कि मंदिर खिले कमलों में भरे जलाशयों के बीच में स्थित होगा। यह मंदिर जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है। इस खूबसूरत मंदिर का मुख्य पूजा स्थल भगवान महावीर की एक प्राचीन चरण पादुका है। यह उस स्थान को इंगित करता है जहां भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्ति के पश्चात पार्थीव अवशेष बचे थे।
यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदिवर्धन के द्वारा करवाया गया था। मंदिर का निर्माण विमान के आकार में किया गया है और जलाशय के किनारों से मंदिर तक लगभग 600 फूट लम्बा लाल पत्थर का पुल बनाया गया है।
अनुश्रुतियों के अनुसार भगवान महावीर के अंतिम संस्कार मे भाग लेनेवाले लोगों के द्वारा एक एक मुट्ठी मिट्टी लेने से यहाँ बड़ा गढ्ढा बन गया जो वर्तमान जलशय में तब्दील हो गया। इस मंदिर का अदभुत सौन्दर्य पयर्टकों की आंखों को सुकून देता है।
कहा जाता है कि जल मंदिर में प्रवेश करते ही मनुष्य सारे बाह्य वातावरण को भूल कर प्रभु भक्ति में अपने आप को खो जाता है, ऐसा शुद्ध व पवित्र वातावरण है यहां का। भगवान महावीर की निर्वाण भूमि का प्रत्येक कण पूजनीय है। प्रभु महावीर की अन्तिम दर्शन इस पावन भूमि में हुई थी अत: यहां का शुद्ध वातावरण आत्मा को परम शांति प्रदान करता है।
पाण्डुकशिला मन्दिर– यह जलमन्दिर के पश्चिम तरफ स्थित है । यहाँ भगवान महावीर स्वामी के चरण पाण्डुकशिला में स्थापित है । इस पाण्डुकशिला परिसर में परम पूज्य आर्यिका 105 श्री ज्ञानमती माता जी के सौजन्य से भगवान महावीर स्वामी की साढ़े ग्यारह फुट लाल पाषण की प्रतिमा बिहार स्टेट दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमिटी के निर्देशन में स्थापित करवाई गयी है । पाण्डुकशिला परिसर में प्रसाधन युक्त दो आधुनिक कमरों का निर्माण कराया गया है एवं अभी शेष कार्य प्रगति पर है । धर्मशाला के कोलाहल से हटकर जलमन्दिर के अत्यंत निकट धर्म ध्यान करने के लिए यह बहुत उपयुक्त स्थल है । इसे महावीर मनोहर उद्यान के नाम से भी जाना जाता है । यहाँ आने वाले यात्रियों को स्मृति स्वरुप ‘स्वर्णरज’ भेंट किया जाता हैं। वही स्थान है जहां भगवान महावीर ने अपने धर्म का अंतिम उपदेश दिया था। अतः इसे भगवान महावीर स्वामी की अन्तिम देशना स्थली के नाम से भी जाना जाता है।
दिगम्बर जैन मन्दिर :- जलमन्दिर के पूर्व दिशा की तरफ दिगम्बर जैन मंदिर है यहाँ बाहर से आने वाले जैन तीर्थ यात्रियों को ठहरने हेतु विशाल धर्मशाला है। जहाँ यात्रियों के लिए सभी तरह कमरें उपलब्ध है। इस मन्दिर में 9 वेदियाँ है सभी वेदियों में सोने की कारीगरी एवं शीशे के काम मन्दिरो में किया गया है। ये मन्दिरो सभी आमनाओ द्वारा पूज्य है।
मन्दिर के बाहर धर्मशाला के प्रांगण में विशाल सफेद संगमरमर से निर्मित विशाल मानस्तम्भ है।
पावापुरी जी सिद्ध क्षेत्र पर हर वर्ष दीपावली के समय भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर विशाल आयोजन होता है। जिसमें भारत के हर कोने से जैन तीर्थ यात्री निर्वाण लाडू प्रभु के चरण में अर्पित कर अपने को धन्य मानते है।
यह भी मान्यता है की इंद्रभूति गौतम स्वामी का भगवान महावीर से यहीं मिलाप हुआ था जिस से प्रभावित होकर भगवान महावीर के पास दीक्षा ली और प्रथम गणधर बने । भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात एक दिन बाद उनके प्रथम शिष्य हुए गौतम गणधर स्वामी का भी निर्वाण नवादा के समीप गणावाँ जी मर हुआ। यहाँ भी एक विशाल सरोवर के मध्य में जल मन्दिर स्थित है जहाँ गौतम गणधर स्वामी के चरण स्थापित है।
- सुनील कुमार जैन ( पटना सिटी )