इतना संपन्न, समृद्ध, दया भावी, दानी जैन समाज आज दर-दर फिर रहा है अपने परिवार के सदस्यों के अस्पताल के लिए।


यह वास्तविकता है और कटु सत्य जिसे हम झुटला नहीं सकते सोचिए हमने, हॉस्पिटल के लिये, स्कूल के लिए, सामाजिक उत्थान के साधर्मिक भक्ति के लिए कब विचार किया?
अभी तक तो जैन समाज मंदिर,तीर्थ, भवन, खर्चीले संघ, वरघोड़े वगैरह से बाहर ही नहीं निकला है धर्म अध्यात्म तो कही दिखता ही नहीं, दिखता है तो सिर्फ आडंबर और फिजूलखर्ची कोरौना के इस कहर के बाद शायद अरिहंत भगवान ,हमें थोड़ी सद्बुद्धि दें। और विचार करने की ताकत दें कि जिनशासन की रक्षा कैसे करे? जैन समाज होगा तो जिनशासन। हमारे जैन समाज के लिए हर बड़े गांव में एक बड़ी आधुनिक हॉस्पिटल हो। एक हाई लेवल लैब की व्यवस्था हो। और हर शहर में जैनों के आधुनिक स्कूल और कॉलेज हो जिससे आगे की जैन पीढ़ी जैन संस्कारो में रहे।
अब वक्त आ गया है कि गुरुभग्वंतो को इस दिशा में सोचना होगा और समाज को सही मार्गदर्शन करना होगा। विनती और नम्र निवेदन है कि गुरुभग्वंत अब अपनी सोच और दिशा सुधारे तो ही जिनशासन की ध्वजा अच्छे से फहराएगी।
इसलिए अभी भी वक्त है मंदिर, संघ, भवन, तीर्थ के अलावा कुछ योजनाएं और हिस्सा हॉस्पिटल , स्कूल शिक्षा, कॉलेज और निम्न परिवारों की साधर्मिक भक्ति के लिए भी रखे। जितना फंड मंदिर, संघ, तपस्या, दीक्षा, प्रतिष्ठा के लिए इक्कठा होता है उसका 25 % सामाजिक विकास और उत्थान के लिए आरक्षित रखे, इस फंड को देव द्रव्य की उपमा देकर उस पैसों को न रोके, नहीं तो समाज ही रुक जायेगा। इस तथ्य को बोली या चढ़ावे के वक्त ही घोषित करना चाहिए कि 25% रकम सामाजिक कार्यों में उपयोग होगा.
अत्यंत दुखद है हमारे समाज की स्तिथि, सच बहुत कडवा होता है कड़वी दवाई की तरह लेकिन वक्त के साथ थोड़ी सी अपनी सोच बदलो तो हमारा अस्तित्व कायम रहेगा और हमारी आने वाली पीढ़ियां इससे फायदेमंद रहेगी और जिनशासन शान से लहराएगा। आपका दिन आनंदमंगल रहे और आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते है।

— एक पाठक के द्वारा भेज गए अपने विचार

 


Comments

comments