कोलकाता में चातुर्मासरत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ परंपरा के आचार्य महाश्रमण जी ने क्षमायाचना पर्व के विशाल कार्यक्रम में लंबे समय से चली आ रही संवत्सरी एकता की मांग पर उदारतापूर्ण प्रस्ताव रखा। आचार्य ने कहा कि मेरी भावना है कि अनेक जैन संप्रदाय के लिए संवत्सरी की तिथि एक ही हो। यानी जैन श्वेताम्बर तेरा पंथ धर्मसंघ, साधुमार्गी संप्रदाय एवं वर्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ एक तिथि को संवत्सरी मनाएं। इस प्रस्ताव के बाद जैन समाज न केवल आशा की किरण जगी है बल्कि आचार्यश्री के इस प्रस्ताव से लोग उनके कायल हो गये हैं।
इस संबंध में साधुमार्गी संप्रदाय के आचार्यश्री रामलालजी महाराज एवं वर्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ के आचार्यश्री शिवमुनिजी महाराज दोनों सह-चिंतन कर एक तिथि का प्रारूप प्रस्तुत करें। यदि प्रारूप में विशेष बाधा नहीं होगी तो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ उसे स्वीकार कर लेगा। यदि किसी कारणवस दोनों आचायरे में एकमत नहीं हो सका तो दोनों आचार्य अपने-अपने प्रारूप मुझे उपलब्ध करा दें, उनमें जो प्रारूप विशेष बाधा के बिना हमारी मूल्य-मान्यताओं के ज्यादा नजदीक होगा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ उसे स्वीकार कर लेगा।
उन्होंने कहा मैं दोनों सम्माननीय आचार्यों से अनुरोध करता हूं कि वे इस दिशा में यथा-संभव प्रयास करें ताकि संवत्सरी की एकता की दिशा में आगे बढ़ा जा सके। बता दें कि संवत्सरी जैन परंपरा में सबसे बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है किंतु मान्यताभेद की वजह से जैन धर्म के विभिन्न संप्रदाय इसे अलग-अलग दिन मनाते हैं। इसलिए लंबे समय से एकता के लिए मांग उठती रही है। सद्भावना नैतिकता और नशामुक्ति के उदेश्य से तीन देशों और हिंदुस्तान के 19 राज्यों में करीब 15000 किमी पदयात्रा पर निकले आचार्य महाश्रमण जी ने यह प्रस्ताव रखकर सद्भावना और एकता की पहल पर मिसाल कायम की है और उनकी इस पहल से जैन समाज में एक नई आशा की किरण जगी है।