दिगम्बर जैनाचार्य विनीत सागर महाराज ने विजयमती त्यागी आश्रम में प्रतिदिन आयोजित अपने प्रवचनों में दान का महत्व बताते हुए कहा कि दान चार प्रकार का होता है आहार दान,औषध दान, अभय दान और शास्त्र दान जो कि सुपात्र को ही देना चाहिए। सुपात्र उसे कहते हैं जो ग्रह त्यागी, तपस्वी, सम्यक दर्शन आदि गुणों के भंडार हो।
जैनाचार्य ने कहा कि सुपात्र के साथ करुणा पात्र को भी दान दिया जा सकता है। करुणा पात्र में गरीब, दीन दुखी ,असहाय, निरीह जीव आते हैं इनके अतिरिक्त दिए गए दान निष्फल होते हैं। जैनाचार्य ने दान का और विस्तृत रूप बताते हुए कहा कि मुनियों को नवधा भक्ति पूर्वक आहार दान देना चाहिए यथा पड़गाहन, उच्चासन, पाद प्रक्षालन, पूजन, मनशुद्धि ,वचन शुद्धि, काय शुद्धि, आहार जल शुद्ध और नमोस्तु पूर्वक आहार दान देना ही उत्तम दान की श्रेणी में आता है। इसके साथ ही श्रावक को अपने सात गुणों श्रद्धा ,संतोष, भक्ति, विवेक, अलोभ, क्षमा और सत्य से युक्त होकर ही आहार दान देना चाहिए। दान देने वाले को नाम या उसके बदले अन्य कोई आकांक्षा नहीं रखनी चाहिए। निस्वार्थ भाव से दिया गया दान ही वास्तविक दान की श्रेणी में आता है। उपरोक्त जानकारी संजय बड़जात्या से प्राप्त हुई
— अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी