पटना सिटी। नेपाल बॉर्डर की यात्रा करते हुए जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जन्मभूमि वैशाली तीर्थ और सीतामढ़ी के रास्ते पदयात्रा करते हुए राष्ट्रसंत आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज के परम शिष्य अहिंसा तीर्थ प्रणेता पूज्य आचार्य श्री 108 प्रमुख सागर जी महाराज ससंघ का मंगल आगमन सुदर्शन पथ गुलजारबाग स्थित श्री कमलदह दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र पर मंगलवार के सुबह 7 बजे हुआ। यह पदयात्रा उत्तर प्रदेश के इटावा से प्रारम्भ हुई थी जो झारखण्ड के सम्मेद शिखर जी (पारसनाथ) पहुंचकर संपन्न होगी। करीब 2500 कि•मी• की इस यात्रा में प्रयागराज, बनारस, मिथिलापुरी, सीतामढ़ी, वैशाली होते हुए महामुनि श्री सेठ सुदर्शन स्वामी की निर्वाण भूमि पाटलिपुत्र पटना 2000 कि•मी• पैदल चलकर पहुंचे है।
भव्य मंगल प्रवेश पर जैन समाज के लोगों ने आचार्य श्री संघ का मंगल आरती, पाद प्रक्षालन कर भव्य अगवानी की। इस मौके पर जैन मंदिर के प्रवेश द्वार पर आकर्षक रंगोली बनाकर महिला श्रद्धालु मस्तक पर मंगल कलश, श्री फल लिए नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु महाराज जी करके संतों का स्वागत की। वहीं जयकारा गुरुदेव का जय जय गुरुदेव, अहिंसा परमो: धर्म: का जयघोष हुआ। इसके पश्चात जैन आचार्य प्रमुख सागर जी, मुनि श्री प्रभाकर सागर जी महाराज और साध्वी माता जी के सानिध्य में श्री 1008 भगवान नेमीनाथ स्वामी का अभिषेक, शांतिधारा व नित्य नियम पूजा-पाठ का कार्यक्रम भक्तिभाव पूर्वक किया गया। शांतिधारा पाठ का उच्चारण आचार्य श्री प्रमुख सागर जी महाराज के मुखारबिंद से हुआ।
राष्ट्र की सुरक्षा दिगम्बरत्व की सुरक्षा से संभव – जैन संत प्रमुख सागर
जैन सिद्ध क्षेत्र कमलदह जी पहुँचने पर आचार्य प्रमुख सागर जी महाराज ने कहा कि संत और बसंत दोनों ही चेहरे पर खुशी लाते हैं। संत समाज में आ जाएं तो संस्कृति और बसंत आ जाये तो प्रकृति मुस्कुरा उठती है। साथ ही सम्पूर्ण समाज को संदेश देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि देश को सुरक्षित रखना है तो दिगम्बरत्व को सुरक्षित रखना होगा। जैसे पेड़-पौधे, वनस्पति, सूर्य, चन्द्रमा आदि प्रकृति दिगम्बर है और उन पर कोई आवरण नहीं है। यदि हम इन पर प्रदूषण का आवरण नहीं चढ़ने देंगे तो पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। इसी तरह जब पर्यावरण और प्रकृति सुरक्षित रहेगा तो धरती का हर देश सुरक्षित रहेगा। उसी प्रकार दिगम्बर संत भी जैन धर्म की संस्कृति और श्रमण परम्परा का निर्वाह करते आध्यात्मिक प्राचीन संदेशो को देते है। शाम में श्रद्धालुओं ने भव्य मंगल आरती और गुरुभक्ति का धर्मलाभ आनंदपूर्वक लिया।
कमलदह दिगम्बर जैन मंदिर में आयोजित हुआ सिद्धचक्र महामंडल विधान
पटना सिटी: सुदर्शन पथ गुलजारबाग स्थित श्री कमलदह जी दिगम्बर जैन मंदिर में मंगलवार को दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक आचार्य प्रमुख सागर जी महाराज ससंघ के पावन सानिध्य में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन धूमधाम से किया गया। जिसमें मंत्रोच्चारण के साथ कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान की क्रियाएँ पूर्ण की गई। जैन श्रद्धालुओं ने श्रद्धापूर्वक 1024 अर्घ्य समर्पित कर एक दिवसीय विधान की आराधना की। मंगल प्रवचन देते हुए आचार्य श्री प्रमुख सागर जी महाराज ने कहा कि सिद्धों की विशेष आराधना के लिए सिद्धचक्र महामंडल विधान किया जाता है। यह ऐसा अनुष्ठान है जो हमारे जीवन के समस्त पाप, ताप और संताप नष्ट करता है। सिद्ध शब्द का अर्थ है कृत्य-कृत्य, चक्र का अर्थ है समूह और मंडल का अर्थ एक प्रकार के वृत्ताकार यंत्र से है। इनको मिलाकर ही सिद्धचक्र बनता है।
उन्होंने कहा कि आगम ग्रंथों के अनुसार मैना सुंदरी ने सिद्धचक्र महामंडल विधान करके कुष्ठ रोग से पीड़ित अपने पति श्रीपाल को कामदेव बना दिया था। इस आयोजन में गुरुदेव आचार्य श्री प्रमुख सागर जी के साथ मुनि श्री प्रभाकर सागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री 105 प्रगुण सागर जी महाराज, साध्वी 105 प्रतिज्ञा श्री माताजी, प्रीति श्री माता जी, परीक्षा श्री माता जी, प्रेक्षा श्री माता जी, आराधना श्री माता जी सहित 8 पिच्छी साधु-साध्वीयों का सानिध्य भक्तों को प्राप्त हुआ।
— प्रवीण जैन