ताड़पत्र पर लिखे जा रहे दुर्लभ जैन ग्रंथ, 900 वर्षों तक रहेंगे सुरक्षित, एक ग्रंथ पर 25 हजार का खर्च


दुर्लभ जैन ग्रंथ कई सौ सालों तक सहेज कर रखे जा सकें और आने वाली कई पीढ़ियों के लिए उपलब्ध रहें ताकि वे उनको पढ़कर जैन धर्म व संस्कृति से परिचित हो सकें। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर व उनके अनुयायियों द्वारा जिनवाणी के लाखों ग्रंथ लिखे गए थे। इसके लिए दिगंबर जैन मुनि श्री आदित्य सागर जी ‎‎महाराज ने नई पहल की है। मुनि श्री ने जैन धर्म के लाखों ग्रंथों को एक बार फिर से पुरानी संस्कृति की तरह ताड़पत्रों पर लिखवाना शुरू किया है। पिछले दो सालों से मुनि श्री इसी प्रयास में लगे हुए हैं। अभी तक वे 43 ग्रंथों को ताड़ पत्र पर लिखवा चुके हैं और 50 से ज्यादा ग्रंथों को ताड़ पत्र पर लिखवाने का काम अभी चल रहा है।

मुनि आदित्य सागर जी ‎‎महाराज (दाएं) प्राचीन ग्रंथों को ताड पत्रों पर उतारने की प्रक्रिया में व्यस्त। वे अब तक 43 ग्रंथों को ताड़पत्र पर लिखवा चुके हैं।

मुनि श्री आदित्य सागर इस दिनों भीलवाड़ा शहर के आरके कॉलोनी स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर ‎में चातुर्मास कर रहे हैं। यहां आने वाले भक्तों को भी वह ताड़पत्र पर लिखे ग्रंथों के बारे में बताते हैं। साथ ही स्वंय भी पुराने जैन ग्रंथों को पेपर पर उतार कर वापस तैयार कर रहे हैं।

देश के हर जैन मंदिर में हो ताड़ पत्र पर लिखा ग्रंथ

मुनि श्री आदित्य सागर जी ‎‎महाराज ने बताया कि उनका प्रयास है कि वह जैन धर्म से जुड़े सभी ग्रंथों को एक बार ताड़ पत्र पर लिखवा दें। इसके बाद हर जैन मंदिर में कम से कम एक ग्रंथ ताड़ पत्र पर लिखा हुआ रखा जाएगा ताकि ताड़ पत्र पर हमारी संस्कृति अगले 900 सालों तक जिंदा रहेगी।

ताड़पत्र की उम्र कागज से करीब 700 साल अधिक

मुनिश्री ने बताया कि सामान्य कागज और ‎‎स्याही अधिकतम 100 से 200 साल में खराब हो जाते हैं, लेकिन ताड़ पत्र लिखा हुआ 800 से 900 सालों तक खराब नहीं ‎होता। हमारे पूर्वजों ने अपनी पूरी संस्कृति और ग्रंथों को लिखने के लिए ताड़पत्र का उपयोग किया था।

काफी कम उपलब्ध होते हैं ताड़पत्र

मुनिश्री ने बताया कि ताड़पत्र बनाने का काम पड़ोसी देश श्रीलंका में बड़े स्तर पर किया जाता है। भारत में ताड़ पत्र कर्नाटक, उड़ीसा, भुवनेश्वर व मैसूर में बनाया जाता है। ताड़पत्र को बनाने का प्रोसेस काफी लम्बा होता है। इसके कारण उन्हें पूरे साल में 3000 हजार से ज्यादा ताड़पत्र नहीं मिल पाते हैं।

एक ग्रंथ पर 25 हजार का खर्च, इंदौर में हो रहे ताड़पत्र पर प्रिंट

एक ग्रंथ को ताड़ पत्र पर लिखने का खर्च कम से कम 25 हजार रुपए आ रहा है। उन्होंने बताया कि जैन ग्रंथ को ताड़ पत्र पर ढालने का काम धर्म और संस्कृति को जिंदा रखने के लिए किया जा रहा है। इसलिए इसमें पैसे का कोई मोल नहीं है। ताड़ पत्र पर ग्रंथों को उकेरने का काम काफी बारीकी का है। इसका काम अभी इंदौर की एक प्रिंटिंग प्रेस में किया जा रहा है।

जानिए- ताड़पत्र और उस पर कैसे लिखते है ग्रंथ

ताड़ पत्र ताड़ के पत्तों से तैयार किया जाता है। ताड़ के पत्ते बड़े आकार के होते हैं। 6 महीने तक उसे नमक के पानी में रखा जाता है। उन्हें छाया में सुखाने के बाद उन पर हल्दी का लेप किया जाता है। कई प्रक्रिया से गुजारने के बाद ताड़ पत्र तैयार होता है। यह सारी प्रक्रिया हाथ से ही होती है।

ताड़पत्र पर अब मशीनों से भी प्रिंट होने लगा है, लेकिन अभी भी ज्यादातर ताड़ पत्र पर हाथों से ही लिखा जाता है। इसके लिए स्क्राइबर (लकड़ी का पेन जिसके आगे एक लोहे की कील लगी होती है) से लिखा जाता है। स्क्राइबर से ताड़पत्र पर हल्के हाथों से अक्षर उकेरे जाते हैं। वे ताड़पत्र पर नजर नहीं आते हैं।

ताड़पत्र पर किसी भी प्रकार की स्याही का उपयोग नहीं होता है। स्क्राइबर से अक्षर उकेरने के बाद उन अक्षरों पर लेमन ग्रास आयल को रगड़ा जाता है। जैसे-जैसे आयल को ताड़पत्र पर रगड़ा जाता है वैसे-वैसे अक्षर नजर आने लगते हैं। कुछ ही देर में यह आयल ताड़पत्र से उड़ जाता है और वह अक्षर ताड़पत्र पर रह जाते हैं। ‎

ताड़ पत्र पर हल्के हाथों से अक्षर उकेरे जाते हैं।‎ फिर ताड़पत्र पर विशेष प्रकार का लेमन ग्रास ऑयल लगाया जाता है। जैसे-जैसे आयल को ताड़पत्र पर रगड़ा जाता है वैसे-वैसे अक्षर नजर आने लगते हैं।

2011 में ली मुनि दीक्षा

मुनि श्री के अनुयायियों ने बताया कि आदित्य सागर जी को 16 भाषाओं का ज्ञान है। मुनि आदित्य सागर‎ महाराज ने गृह जीवन में बाल ब्रह्मचारी सन्मति भैया के रूप ‎में एमबीए की पढ़ाई की थी। इसके बाद 25 साल की उम्र में वर्ष 2011 ‎में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ली।‎ आदित्य सागर जी को हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़, संस्कृत, प्राकृत, ‎अपभ्रंश, तमिल सहित 16 भाषाओं का ज्ञान है। उन्होंने 170 ‎से अधिक कृतियों की रचना की है।

दिगंबर जैन मुनि आदित्य सागर जी US ने कहा कि पूर्वाचार्यों की जो कृति है उसका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है। जैसे एक बालक अपने पिता की दी संपत्ति को बढ़ाता है। वैसे ही एक मुनि-एक श्रमण अपने पूर्वाचार्यों के लिखे ग्रंथों को संरक्षित कर आगे बढ़ता है। इसलिए प्रत्येक साधु को कर्म करना चाहिए। दो हजार साल पुराने आचार्यों के लिखे ग्रंथ हैं। हमारे पास इतना ज्ञान नहीं है कि ऐसे ग्रंथ दुबारा लिख पाएं। लगभग 800 साल एक ताड़ पत्र की उम्र होती है। इससे प्राचीन परंपरा भी बनी रहती है और एक बहुमान भी आता है। आप मोबाइल पर ग्रंथ पढ़ें और कभी हाथ में ग्रंथ लेकर पढ़ें अंतर आता है। रामचरित्र मानस अभी प्रिंट में आ रही है और जो पुरानी ताड़ पत्रों पर लिखी गई, उसे पढ़ने में अंतर आता है। पूर्वाचार्यों के बहुमान के साथ-साथ संस्कृति का संरक्षण भी हो, इस भाव से इन ग्रंथों को ताड़ पत्र पर लिखा जा रहा है।

अभी पूरे भारत में 100 ग्रंथों को ताड़ पत्र पर लिखवाया जा चुका है। सिलसिला जारी है, संख्या लाखों में जाएगी। बस ताड़ पत्रों की उपलब्धता काफी कम होती है। एक ताड़ पत्र को बनने में बहुत समय लगता है। 6 महीने तक उसे नमक के पानी में रखा जाता है। उसके बाद उस पर हल्दी से लेप किया जाता है। सूखने के बाद जो बचते हैं, उनमें ग्रंथ लिखा जाता है।


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