जैन धर्म के शाश्वत सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की झारखंड सरकार की योजना का पूरे देश में विरोध शुरु हो गया है। झारखंड के गिरिडीह जिले के मधुबन में पारसनाथ शिखर स्थित है, जहां जैन धर्म के 24 तीर्थकरों में से 20 तीर्थकरों ने कठिन साधन-तपस्या कर मोक्ष की प्राप्ति की थी। जैन श्रद्धालुओं के लिए इस पर्वत का कण-पावन और पूजनीय है। यही कारण है कि श्रद्धालुगण लगभग 27-28 किमी. की पर्वत की वंदना नंगे पैर और बिना कुछ खाये-पिये करते हैं, यहां तक कि पर्वत की पूरी वंदना करते समय पर्वत पर मूत्र त्याग तक नहीं करते हैं।
ऐसे पावन और पवित्र स्थल को पर्यटन स्थल बनाने से पूरे क्षेत्र की पवित्रता और पावनता को झटका लगेगा। जैन आचायरे एवं समाजीजनों द्वारा इसे धार्मिक आस्था पर प्रहार बताया है। महाराष्ट्र के बीजेपी उपाध्यक्ष विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास को पत्र लिखकर कहा है कि श्री सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल न बनाया जाए बल्कि इस पूरे क्षेत्र की पवित्रता, गरिमा एवं श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखा जाए और इसे एक धार्मिक स्थल ही बने रहने दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थल पावन और पवित्र होता है जबकि पर्यटन स्थल मौज-मस्ती से परिपूर्ण होता है, जहां पावनता का कोई स्थान नहीं होता। पूर्व में भी मुगल शासकों एवं अंग्रेजी शासकों के समय भी श्री सम्मेद शिखर जी पवित्रता और पावनता बरकरार बनी रही। ऐसे श्रद्धानवत पावन तीर्थक्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने से उस क्षेत्र की महत्ता, अस्मिता एवं धार्मिक आस्था को ठेस लगेगी।