श्रवणबेलगोला। देश के राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद ने 7 फरवरी 2018 को कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में गोमटेश्वर बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक के भव्य और ऐतिहासिक महा महोत्सव का उदघाटन अपने कर कमलों से किया । इस अवसर पर महामस्तकाभिषेक का कुशल नेतृत्व कर रहे जगतगुरू पूज्य स्वस्ति श्री चारुकीर्ति जी स्वामी ,राष्ट्रपति महोदय की धर्मपत्नी श्रीमती सविता कोविंद जी भी उपस्थित रहीं। साथ में कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वालाजी, मुख्यमंत्री सिद्धरमैया जी , भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच डी देवगौड़ा जी ,राजर्षि श्री वीरेंद्र हेगड़े जी, कर्नाटक के पशुपालन मंत्री ए.मंजू जी, अभय चंद जी, महामस्तकाभिषेक समारोह की अध्यक्षा श्रीमती सरिता जैन चेन्नई आदि लोग उपस्थित रहे ।
इस अवसर पर देश के महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी ने अपने संबोधन में कहा कि शांति, अहिंसा, करुणा की प्रतीक बाहुबली की प्रतिमा को देखकर मुझे अति प्रसन्नता हो रही है। यह क्षेत्र सदियों से मानवता का संदेश देता रहा है ।हम सभी जानते हैं कि
ऋषभदेव (आदिनाथ) के पुत्र भगवान बाहुबली चाहते तो अपने भाई भरत के स्थान पर राजसुख भोग सकते थे। लेकिन उन्होने सब कुछ त्याग कर तपस्या का मार्ग अपनाया और पूरी मानवता के कल्याण के लिए आदर्श प्रस्तुत किये। 1,000 वर्ष पहले बनाई गई यह प्रतिमा उनकी महानता का प्रतीक है।
इस प्रतिमा के कारण यह क्षेत्र देश- विदेश में आकर्षण का बड़ा केंद्र रहा है। हमारी सांस्कृतिक और भौगोलिक एकता का बहुत बड़ा केंद्र यह क्षेत्र बना हुआ है ।आज से 23 सौ वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश के उज्जैन से जैन आचार्य भद्रबाहु यहां पधारे थे। बिहार के पटना क्षेत्र के उनके शिष्य मौर्य साम्राज्य के संस्थापक मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त भी यहां आए थे ।वह अपनी शक्ति के शिखर पर रहते हुए भी सारा राजपाट छोड़कर अपने पुत्र बिंदुसार को राज सौपकर यहां आ गए थे। यहां आकर उन्होंने एक मुनि का जीवन अपनाया और तपस्या की। यहीं चंद्रगिरी की एक गुफा में अपने गुरु का अनुसरण करते हुए चंद्रगुप्त ने सल्लेखना का मार्ग अपनाया और शरीर का त्याग किया। राष्ट्र निर्माताओं ने शांति, अहिंसा ,करुणा और त्याग पर आधारित परंपरा की यहां नीव डाली। धीरे-धीरे देश के लोग यहां आने लगे और यह क्षेत्र आकर्षण का केंद्र बन गया। जैन परंपरा की धाराएं पूरे देश को जोड़ती हैं ,मैं जब बिहार का राज्यपाल था तब भगवान महावीर की जन्म और निर्वाण भूमि में जाने का अवसर मिला था। आज यहाँ आने का अवसर प्राप्त हुआ है।
लगभग 1000 वर्ष पहले इस विशाल और भव्य प्रतिमा का निर्माण कराया गया था। इस प्रतिमा का निर्माण कराने वाले गंगवंश के प्रधानमंत्री चामुंडराय और उनके गुरु ने सन 981 में पहला अभिषेक किया था उसके बाद हर 12 वर्ष में अभिषेक की परंपरा चालू हुई, जो आज भी जारी है। भगवान बाहुबली की यह विशाल प्रतिमा जो हम सब लोगों के लिए दर्शनीय है।
गोमटेश्वर की यह प्रतिमा भारत की विकसित संस्कृति ,स्थापत्य कला, वास्तुकला और मूर्ति कला का बेजोड़ उदाहरण है ।शिल्पकारों ने अपनी श्रद्धा और भक्ति से एक विशाल निर्जीव ग्रेनाइट के पत्थर में जान डाल दी । अहिंसा परमो धर्म का भाव इस प्रतिमा के मुख मंडल पर अपने पूर्ण रूप में दिखाई देता है। भगवान बाहुबली की यह दिगंबर प्रतिमा और इसपर माधवी लताओं की आकृतियां उनकी तपस्या के बारे में बताने के साथ-साथ यह भी स्पष्ट करती है कि वह किसी भी बनाबटी से मुक्त थे और प्रकृति के साथ एकाकार थे ।जैन मुनियों ने यह परंपरा आज भी कायम रखी है ।जैन धर्म के आदर्शों में हमें प्रकृति के संरक्षण की सीख मिलती है। जैन धर्म में सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र को तीन रत्नों के रूप में जाना जाता है लेकिन यह तीनों पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी हैं।शांति ,अहिंसा,भाईचारा, नैतिक चरित्र द्वारा ही विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।
मुझे बताया गया है कि विश्व शांति हेतु प्रार्थना करने के लिए कई बाहरी देशों से तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों से भारी संख्या में आज यहां श्रद्धालु आए हुए हैं। हमारे सामने जो विद्यमान गोम्टेश की प्रतिमा है उसके चेहरे पर भी पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए सहानुभूति का भाव दिखाई देता है ।आप सब की प्रार्थना में निहित विश्व कल्याण की भावना आतंकवाद और तनाव से भरे इस दौर में सभी के लिए शिक्षाप्रद है। मैं सभी देशवासियों की ओर से विश्व शांति के लिए प्रतिबद्ध आप सभी श्रद्धालुओं को इस कल्याणकारी प्रयास में सफलता की शुभकामना देता हूं ।मुझे प्रसन्नता है कि आप सभी श्रद्धालुओं के साथ जैन धर्म के इस ऐतिहासिक महाकुंभ महोत्सव का मुझे साक्षी बनने का आज अवसर मिला है ।मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि यहां के ट्रस्ट के प्रयास से बच्चों के लिए स्कूल ,अस्पताल, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलिटेक्निक और नर्सिंग कॉलेज की स्थापना कराई गई है और एक प्राकृत विश्वविद्यालय के निर्माण पर भी कार्य चल रहा है। मैं सभी आयोजकों ,श्रद्धालुओं, पंचकल्याणक ,महामस्तकाभिषेक से जुड़े सभी आयोजनों के सफलता की कामना करता हूं।
इस अवसर पर कर्नाटक के राज्यपाल महामहिम वजूभाई वाला ने कहा कि हम सभी आज यहां पर आध्यात्मिक और पवित्र कार्य के लिए एकत्र हुए हैं । हम यहां पाषाण की मूर्ति के दर्शन के लिए एकत्र नहीं हुए हैं बल्कि मूर्ति में जो सत्य, अहिंसा रूपी चेतनता है, हम सब उसके दर्शन के लिए एकत्रित हुए हैं । हमारी संस्कृति त्याग की संस्कृति है ।महावीर ने राजपाट का त्याग किया ।गोमटेश्वर बाहुबली भगवान त्याग से महान बने। हमारी संस्कृति देने की संस्कृति रही है। देने में आनंद आता है। देश की सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने के लिए हमें भौतिकवाद को छोड़कर अध्यात्म की ओर जाना होगा। राज्यपाल महोदय ने भामाशाह के महान दान का भी उल्लेख करते हुए समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए कुछ ना कुछ त्याग करने की बात कही ।उन्होंने जैन दर्शन के सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य को जीवन में उतारने की बात पर जोर दिया ।कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया जी ने भी गोमटेश्वर बाहुबली भगवान के इस महामस्तकाभिषेक को ऐतिहासिक बताया। राजर्षि डॉक्टर वीरेंद्र हेगड़े जी ने भी इस अवसर पर सभा को संबोधित किया। जगतगुरु पूज्य स्वस्ति श्री चारुकीर्ति जी स्वामी ने भी अपने उद्बोधन में भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक की ऐतिहासिक परंपरा के बारे में अवगत कराया और महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी के अपनी धर्मपत्नी सविता गोविंद जी के साथ पधारने पर उनका अभिनंदन किया।
इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने अपने आशीष वचन में कहा कि ‘अहिंसा से सुख और त्याग से शांति’ भगवान बाहुबली के इस परम संदेश से समग्र विश्व का वातावरण परिवर्तित हो सकता है।
राष्ट्रपति सहित सभी अतिथियों ने मंचासीन परम पूज्य आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज सहित सभी आचार्यों, मुनिराजों, माताजी के दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया।
उल्लेखनीय है कि श्रवणबेलगोला में 17 से 25 फरवरी 2018 तक गोम्टेश बाहुबली भगवान का महामस्तकाभिषेक का भव्य मनोहर और ऐतिहासिक आयोजन होने जा रहा है, जिसे जैन समुदाय का महाकुंभ माना जाता है ।यह आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है।
- डॉ. सुनील जैन ‘संचय’