आज देखादेखी में हम इतने आगे बढ गये है कि अपनी सभ्यता व संस्कृति क़ो भूलते जा रहे हैं। इसके अंतर्गत हम अपनी पहचान को सही जगह स्थापित करने में असमर्थ महसूस करते है।
वही हमारे जैन निग्रंथ दिगम्बर मुनि अपने साधना ,संयम से अपनी ही नहीं बल्कि अपने सभ्य समाज की नींव को संजोये रखे है। उनके गहन अध्ययन के फलस्वरूप ही आज हमें उत्कृष्ट प्राकृत भाषा को समझने का अवसर प्राप्त हुआ, संयमित व सुलभ करने हेतु हमारे गुरुवर मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज द्वारा आज सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य देशो मे इसका प्रचार प्रसार मुख्य रुप से अजेश जी ,नेहा जी, नीलम जी, संगीता जी, प्राकृत व अन्य सहयोगियों के भरसक प्रयत्नों का सुंदर समायोजन फैलता हुआ दिख रहा है।
इसके अध्ययन मात्र से ही हम अपनी संस्कृति, ग्रंथो को अंतरंग कर अपना ही नहीं बल्कि आगे आने वाली पीढी का भी दिशानिर्देश कर सभ्य समाज का निर्माण कर सकते है। भाषा के बहुरुपी रंग है। सुंदर भाषाओ में प्राकृत भाषा का रंग सर्प्रवथम है।
कुरावली
“ प्राकृत का सुंदर बगीचा, इसको गुरुवर प्रणम्य सागर जी ने विवेकपूर्ण सींचा
“चाहू ओर पौधो को उनके शिष्यो ने बडी लगनता के साथ रोपा
हर फूलो की सुगांधता लेने भक्तो का जुडा है रेला, न कोई बडा न कोई छोटा
हर फूल की पत्तियों पर लिखा गुरूवर ने प्राकृत का अद्भूत लेखा ”
इसकी रक्षा का जब बजा वीणा ,हर शिष्या का मन ये ही बोला
प्राकृत भाषा के बिन जीवन है अधूरा, इसकी ज्ञान गंगा मे हमे
सदा ही रहना
सदा ही रहना
सदा ही रहना
— नीलम जैन
डॉ अजेश जैन शास्त्री 09784601548
श्रीमती नेहा जैन प्राकृत 09817006981
श्रीमती संगीता जैन 07404925354
नीलम जैन