जैन धर्म के शास्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी की वंदना जैनधर्माम्बलंबी अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार जरूर करना चाहता है और ऐसी चाहत हो भी क्यों न, इस पावन भूमि पर जैन धर्म के 20 तीर्थकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की थी। ऐसी पावन भूमि श्री सम्मेद शिखर जी वंदना करने पूरे देश से वषर्भर श्रद्धालुगण आते रहते हैं। ऐसी पवित्र और पावन भूमि जहां का कण-कण पूजनीय और वंदनीय है।
ऐसे तीर्थक्षेत्र में स्थानीय तीर्थक्षेत्र कमेटी के पदाधिकारीगण एवं सदस्यगण सहित वहां वेतन पर काम करने वाले प्रत्येक कर्मचारी का यह दायित्व बनता है कि दूर से आने वाले किसी भी यात्री को असुविधा का सामना न करना पड़े किंतु विडंवना ही है कि सैकड़ों किलामीटर की यात्रा कर यहां पहुंचने के बाद श्रद्धालों को बहुत सारी असुविधाओं का सामना करना पड़ता है, और वहां की स्थानीय कमेटी और पदाधिकारीगण को आपकी समस्या से कोई लेना-देना नहीं है।
शिखर जी की वंदना हेतु कई वृद्ध एवं अस्वस्थजन डोली से वंदना करते हैं। यहां पर डोली वालों का बुरा हाल है और अपने मनमाने तरीके से श्रद्धालुओं से ऊलजलूल पैसा वसूलते हैं। यहां तक कि बुक करने के बाद मना तक कर देते हैं कि इतने पैसे लेंगे, जाना है तो जाओं नहीं तो रहने दो। जबकि वहां पर स्थानीय कमेटी द्वारा डोली वालों का मानदेय निर्धारित किया गया है, उस राशि पर डोली वाले यात्रियों को यात्रा नहीं कराते हैं। जब इस बारे में श्रद्धालु जिस धर्मशाला में ठहरे हैं, वे संबंधित मंदिर कमेटी के ऑफिस में इसकी शिकायत या अपनी परेशानी जताने जाते हैं तो उस समय मौजूद कमेटी का प्रतिनिधि श्रद्धालुओं की बात सुनना तो दूर वह किसी भी तरह की बात नहीं करना चाहता।
यहां तक डोली वाले अपने मनमाने तरीके से निर्धारित शुल्क से दोगुना राशि ले रहे हैं और वहां का स्थानीय मंदिर कमेटी कान में तेल डालकर बैठी है। कुछ श्रद्धालु तो ऐसे होते हैं, जिनके पास पैसे कम होते हैं या जो डाली का खर्च नहीं उठा पाते हैं, वे पैदल ही यात्रा करनी शुरु करते हैं और देखा गया है कई वृद्ध श्रद्धालु चढ़ाई चढ़ने के कुछ ही देर बाद वापस नीचे उतर आते हैं और कहते हैं कि मुझ पर इतने पैसे नहीं है कि निधार्तिर राशि से दोगुनी राशि देकर डोली कर सकूं।
इसी तरह मधुबन स्थित श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर में कमेटी और वहां काम करने वाले कर्मचारियों का हाल देखिए कि प्रात:काल अभिषेक के लिए जाने पर स्नानगृह में सिर्फ दो बाल्टी ही नजर आई जबकि नहाने वाले लोग काफी ज्यादा थे। यहां तक कि स्नान के बाद पहनने वाले धोती-दुपटटे एक दिन पुराने जमीन पर नीचे ढ़ेर लगे पड़े थे और शुद्ध-साफ उपलब्ध नहीं थे।
अभिषेक करने वाले लोगों ने उन्हीं पुराने धोती-दुपटटे (पहने हुए) को धोया फिर सुखाकर पहना। इतने बड़े तीर्थक्षेत्र में स्थानीय मंदिरों की कमेटियों पर बैठे उच्चस्थ लोगों से विनम्र अनुरोध है कि स्थानीय स्तर पर काम कर रहे प्रबंधक से लेकर कर्मचारी तक को सतर्क और सचेत करें ताकि आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो। इसी के साथ स्थानीय मंदिर कमेटियां ऐसी व्यवस्था करें ताकि आने वाले श्रद्धालुओं से निर्धारित राशि से ज्यादा राशि अपने मनमाने ढ़ंग से न लें।