बांसवाड़ा। हाउसिंग बोर्डजैन मंदिर में विराजित आचार्य श्री पुलक सागरजी महाराज ने कहा कि धार्मिक संस्कारों रीति-रिवाजों एवं पूजन पाठ की परंपराओं में पहले और आज के समय में बहुत बड़ा नकारात्मक परिवर्तन देख रहा हूं। बचपन में हमारा हाल यह था कि जब तक मंदिर न जाएं माता खाना नहीं देती थी। घर में दादी धर्म के लिए नियम, कायदे सिखाती थी। अब तो मुझे अपने आसपास ऐसी मां, दादी, चाची नजर ही नहीं आती। तुम क्या सोचते हो कि बच्चों को पाठशाला में भेजकर उनकी धार्मिक शिक्षा की इतिश्री हो जाएगी। हरगिज नहीं। मार्मिक उद्गार के साथ आचार्य ने कहा हर घर में हर व्यक्ति को धर्म से जोड़ना होगा तभी बच्चों को कुछ हासिल हो सकेगा और वह नैतिक, धार्मिक, ज्ञानवान बन सकेंगे। मंदिरों में धार्मिक प्रतियोगिताएं होती है, लेकिन इन प्रतियोगिताओं का एक उद्देश्य मात्र पुरुस्कार हासिल करने तक ही सीमित होता है। उन्होने कहा कि सदियों पहले कबीर ने कहा था कबीरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर। अब कभी-कभी मैं अनुभव करता हूं कि धनी और अमीर वर्ग के पास धन उपार्जन में व्यस्तता के कारण इतना समय ही नहीं है या इतनी योग्यता ही नहीं है कि वे व्रत नियम पालें।
— अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी