भोगांव मैनपुरी मार्ग पर जैन धर्म के गौरव का नया अध्याय लिखा गया है। यहां तिराहे पर नवनिर्मित भव्य जैन कीर्ति स्तंभ अब श्रद्धा, संस्कृति और प्राकृत भाषा की गरिमा का प्रतीक बनकर समूचे क्षेत्र का गौरव बढ़ा रहा है।
सकल दिगंबर जैन समाज, कुरावली की वर्षों पुरानी मांग को साकार करते हुए यह भव्य स्तंभ उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री माननीय श्री जयवीर सिंह के सहयोग से पूर्ण हुआ।
वड्ढमाण सामी थुदि : प्राकृत भाषा में अंकित एक ऐतिहासिक स्तुति
इस नवीन कीर्ति स्तंभ की विशेषता यह है कि इस पर भोगांव नगर के गौरव, प्राकृत मर्मज्ञ मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज द्वारा प्राकृत भाषा में रचित “वड्ढमाण सामी थुदि” (वर्धमान महावीर स्वामी की वंदना) सुंदर ढंग से अंकित की गई है।
प्राकृत वही दिव्य भाषा है जिसमें स्वयं भगवान महावीर स्वामी ने अपने उपदेश दिए थे। इस स्तुति के अंकन के साथ, न केवल भगवान महावीर की महिमा का गुणगान हुआ है, बल्कि प्राकृत भाषा की महत्ता और जीवंतता को भी नया आयाम मिला है।
समर्पित प्रयास से साकार हुआ सपना
“उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान” के सक्रिय सदस्य श्री सुनील कुमार जैन का इस महायोजना में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने समाज की भावना को समझते हुए तन-मन-धन से सहयोग किया और अथक परिश्रम कर इस कीर्ति स्तंभ के निर्माण तथा प्राकृत लेखन के अंकन को संभव बनाया। उनके योगदान से जैन समाज का यह बहुप्रतीक्षित सपना आज साकार हुआ है।
सरकारी समर्थन और समाज का समर्पण
माननीय श्री जयवीर सिंह के सक्रिय सहयोग से इस योजना को नया जीवन मिला। सरकारी प्रोत्साहन और समाज के समर्पण ने मिलकर भोगांव को जैन धर्म के एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
समाज में उत्साह और गौरव का वातावरण
नवनिर्मित कीर्ति स्तंभ का दर्शन करने के लिए स्थानीय जैन समाज के साथ-साथ दूर-दराज से भी श्रद्धालु आने लगे हैं। प्राकृत भाषा में अंकित “वड्ढमाण सामी थुदि” को पढ़कर भक्तगण गहरे आध्यात्मिक आनंद का अनुभव कर रहे हैं।
समाज के वरिष्ठजनों और युवाओं ने इसे जैन संस्कृति के संरक्षण और प्रचार का ऐतिहासिक क्षण बताया है।
भविष्य की प्रेरणा
यह कीर्ति स्तंभ आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनकर रहेगा कि जब श्रद्धा, परिश्रम और सही दिशा में कार्य होते हैं, तो धर्म, भाषा और संस्कृति का गौरव शिखर तक पहुँच सकता है।
भोगांव का यह नया प्रतीक अब क्षेत्रीय ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी जैन धर्म की प्रभावना का नया केंद्र बनने की ओर अग्रसर है।
“जब श्रद्धा शिल्प बनती है, तब इतिहास गढ़ा जाता है। भोगांव का कीर्ति स्तंभ इसका जीवंत प्रमाण है।”