कुण्डलपुर सन 1976 सुना है कुण्डलपुर वर्षायोग के जब वर्षा रुक जाती तब गुरुवर मंदिर के बाहर खुले आकाश के नीचे शिला तल पर बैठ जाते थे एक दिन जब शिला तल पर बैठ रहे थे तभी एक श्रावक् ने झट से लाकर चटाई बिछा दी।
आचार्य गुरुवर ने देख लिया और मुस्कराकर बोले की जिन्हे वस्त्र गंदे होने का भय है। ये चटाई उनके लिए है हमारे तो वस्त्र है नहीं इसलिए हमको कोई डर नहीं है। सभी लोग गुरुवर के मनोविनोद पर हसने लगे और प्रकृति के बीच उनके प्रकतिस्थ आत्मस्थ रहने की बात सोचकर सभी का मन गदगद हो गया। प्रकृति मे प्रकृति की तरह निश्चल और निस्पृह होकर विचरण करना एक सच्चे साधू की उपलब्धि है।
— अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी (मुनि क्षमासागर जी की पुस्तक आत्मानवेशी)