आज की भोर एक नयी उमंग और उत्साह का उजाला लेकर आई थी |
मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज और मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज का आपस में 23 सालों के बाद मिलने का साक्षी बने हम और आप जैसे हजारो श्रावक मुनिराजों का मंगल मिलन देखने व्यावर की जैन समाज के अतिरिक्त व्यापारी समाज ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया सभी का उत्साह देखने लायक था ड्रोन हेलीकाप्टर द्वारा पुष्प बृष्टि की गयी जो प्रभाबना का ही अंग कहा गया है मिलन चोराहे पर पूर्ण हुआ तब जलूस के साथ प्रवचन सभा की और प्रस्थान हुआ और जलूस की शोभा को देख मन गद गद हो गया
प्रवचन करने का मौका श्री विराट सागर जी का था तब उन्होंने अपने प्रवचन में मुनिद्वय को आचार्य भगवंत के दो स्वस्थ भुजाओं के रूप में बताया और कहा कि मुनिराजों के कंधे पर जिनवाणी की प्रभावना की महती जिम्मेदारी है और गुरुवर उसे बखूबी निभा भी रहे है गुरुदेव ने राजस्थान में शुद्ध जैन केसर की फसल उतपन्न कर समाज को कृत कृत किया है पूज्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि हम सभी पूज्य विद्या सागर जी जैसे समुद्र की नहरे है जो समूचे भारत में फैल जिन धर्म की फसल को बड़ा रहे है उन्होंने पूज्य मुनि श्री को अपने अग्रज कहते हुए कहा कि मुनि श्री मुझ से बड़े है और सदा बड़े रहेंगे हम सभी आचार्य भगवंत की कृतियां हे जिनके नाम रंग रूप तो अलग हो सकते हे पर उनके गुण एकदम से ही समान है
पूज्यवर ने अपने प्रवचन में अपने सभी अनुज के बारे में कहा कि मुनि प्रमाण सागर जी से 23 बर्षो के अंतराल में मुझे कभी लगा ही नही हम आपस में कभी एक दूसरे से अलग हुए है, मुनि श्री ने कहा कि पहिले हम दो क्षुल्लक जी के साथ थे आचार्य भगवंत के आशीष से हमारे द्वय मुनिराज महा सागर जी निष्कंप सागर जी हमारे पास आ गए और आज हमारे द्वय मुनिराज प्रमाण सागर जी विराट सागर जी भी हमे मिले ।प्रमाण सागर जी महाराज के अलावा शेष तीनो मुनिराजों की दीक्षा के बाद आपस में परस्पर मिलना भी बड़े ही रोमांच की बात है
मुनि श्री ने कहा कि व्यावर वह नगर है जब यहाँ आचार्य भगवंत अपने आचार्य पद को पाने के बाद पहली बार इसी नगर में चातुर्माश किया था | पूज्य मुनि महासागर जी महाराज और पूज्य मुनि निष्कंप सागर जी महाराज के मिल्न के बाद पहला चातुर्माश भी व्यावर नगर में हुआ है
पूर्व में आचार्य शांति सागर जी महाराज और दक्षिण वाले आचार्य शान्ति सगर जी का एक साथ मिलन और चातुर्माश कराने का सौभाग्य भी व्यावर को प्राप्त है और यह पूण्य ही है कि दोनों संघो का मिल्न भी आज व्यावर की पावन धरा पर हुआ
मुनि श्री ने चुटकी लेते हुए कहा कि व्यावर वाले स्वयं भले ही एक होकर ना रहे लेकिन दुसरो को मिलाने में बहुत ही विश्वास रखते है
सभी को आशीष देते हुए आज की सभा का समापन हुआ
सभी मुनिराजों के पावन चरणों में सादर नमन नमन नमन
श्रीश ललितपुर
पुण्योदय विद्यासंघ