खनियॉधाना – खनियॉधाना मे पारसनाथ दिगम्बर जैन बडा मन्दिर जी मे चातुर्मास कर रहे मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज जी ने पं० जुगलकिशोर मुख्तार के काव्यो की रचना मेरी भावना पर प्रतिदिन प्रात: 8:30 बजे से प्रवचन चल रहे है | प्रवचन की श्रंख्ला मे आज पूज्य मुनि श्री ने ” रहे सदा सतसंग उन्ही का ” पंक्ति की व्याख्या का गुण गान करते हुये कहा कि हमेशा धर्मात्मा पुरूष भावना भाता है| कि मुझे नितशासन अभ्यास का अवसर प्राप्त हो ईश्वर की भक्ति करने के भाव रहे तथा सतसंगती प्राप्त हो | इसी वीच पूज्य मुनि श्री ने कबीरदास जी के दोहे “राम बुलावा देखकर कबिरा दीना रोय, जो मजा सतसंग मे वेकुंट बीच न होय का ” का उदाहरण देकर समझाया कि जिस प्रकार पानी की बूंद गन्ने के पेड के सतसंग से मीठा रस वन जाती है | जबकी नीम के पेड मे पहुचकर कडवा रस , सर्प के मुख मे जहर वन जाता है| हमेशा आर्य पुरूष की संगती करनी चाहिये दुर्जनो की संगती से वचना चाहिये| हमेशा पुणानो(प्रथमानुयोग) का अभ्यास कर महापुरूषो के चारित्र से गुण ग्रहण कर अपना जीवन उन्नत वनाया जा सकता है| उनके गुणो को जीवन मे उतार कर उनका अनुशरण कर हम भी संसार के दु:खो से छुटकारा पा सकते है| यह बात जानते सब है| चर्चा भी करते है लेकिन चर्चा से नही चर्या से धर्म होता है| हमेशा दूसरो की अच्छाई सदगुणो का आचरण करे चर्चा का विषय वनाकर उनका प्रसारण करे ताकी दूसरे जन भी प्रभावित होकर अनुसरण करें | शास्त्रो मे भगवान श्री कृष्ण का उदाहरण दिया गया है| उन्होने एक सडे मरे हुये कुत्ते मे उसकी सुन्दर दंत पंक्ति की तारीफ की थी | हमे दूसरो के अवगुमो से दूर उनकी प्रसारण से दूर रहना चाहिये किसी की निन्दा नही वल्की उसके सदगुणो की प्रसंसा एंव संगती करना ही आर्य पुरूष का लक्षण है|
- खनियॉधाना स्वप्निल जैन (लकी )खनियॉधाना