दमोह। आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने अपने मंगल उद्बोधन मे कहा गाठ चाहे शरीर की हो या मन की रस्सी की हो या लकड़ी की सभी खतरनाक होती है, शरीर की गाठ ट्यूमर या कैंसर कहलाती है वह गांठ जीवन लीला समाप्त कर सकती है। इसीलिए इसे आपरेशन कर हटाया जाता है।
मन की गांठ क्रोध,मान, माया, लोभ रूप कषायों की होती है यह मन की गांठ डिप्रेशन हाई ब्लेड प्रेशर एवं ह्रदय रोग पैदा करती है। मन की गांठ उपदेश सुनने और धर्म ध्यान करने से खुलती है। जिसके मन मे गाठ होती है वह मोक्षमार्ग से घिरी से उतर कर दुख के मार्ग उतर जाता है। इसलिये मन में पड़ी गाठ को पहले खोलना चाहिए फिर व्रत उपवास करना चाहिए और दीक्षा लेनी चाहिए।
आचार्य भगवन ने कहा विषय भोग भोगने के बाद और संसार जाल में फंसने के बाद वैराग्य प्राप्त हो ऐसा कोई नियम नही है क्योकि जाल में फंसे हुए भोगिगो के दुख को देखकर बिना भोग ही वैराग्य हो सकता है।
— अभिषेक जैन लुहाडीया, रामगंजमंडी