अंग क्षेत्र के प्रसिद्ध दिगम्बर जैन मंदारगिरी जी सिद्ध क्षेत्र भगवान वासुपूज्य स्वामी के तप,ज्ञान एवं निर्वाण भूमि में जैन धर्मावलंबियों के चल रहे महान पर्व पर्युषण में आज रत्नात्रय व्रत आरंभ हुआ जिसके बीच उत्तम आकिंचन धर्म को मनाया गया। प्रात: काल में जैन समाज ने मंगलाचरण के बाद खड्गासन भगवान वासुपूज्य का महामस्तकाभिषेक किया साथ में कुंथुनाथ भगवान, महावीर भगवान का भी अभिषेक किया। पश्चात वृहद शांतिधारा उत्तरप्रदेश से आये राजन जैन को सौभाग्य प्राप्त हुआ। आकिंचन धर्म विशेष पूजा में समुच्चय पूजा, पंचमेरु पूजा, सोलहकारण पूजा, रत्नत्रय पूजा, सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र पूजा, दसलक्षण धर्म पूजा आदि ग्यारह प्रकार की पूजा की गई। वही नवग्रहरिष्ट विधान पूजा का आयोजन किया गया। जैन श्रदालु इस महापर्व को धूम-धाम के साथ मना रहे है।
क्षेत्र प्रबंधक पवन कुमार जैन ने बताया कि आकिंचन धर्म का अर्थ है जहाँ कुछ भी शेष ना बचे। हम गृहस्थ के जीवन में आकिंचन धर्म तभी ला सकते है जब हम अपने परिग्रह के त्याग अथवा सीमा बनाने के उपरांत उससे ममत्व को पूर्ण रूप से त्यागे।
उत्तम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह चिंता दुख ही मानो।
फ़ांस तनक सी तन में सालै, चाह लंगोटी की दुख भालै।
अर्थात- उत्तम आकिंचन गुण को धारण करना चाहिए क्योंकि इसके विपरीत परिग्रह चिंता व दुख का ही कारण होता है। दिगम्बर मुनिराज सभी प्रकार के परिग्रह त्यागी होने के कारण संसार में सबसे अधिक सुखी होते है।
जिस व्यक्ति ने अंतर बाहर 24 प्रकार के परिग्रहों का त्याग कर दिया है , वो ही परम समाधि अर्थात मोक्ष सुख पाने का हकदार है।
आकिंचन रूप आत्मा-परिणति को आकिंचन करते है। आकिंचन हमे मोह को त्याग करना सिखाता है।
सब मोह पप्रलोभनों और परिग्रहों को छोड़कर ही आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है।
आज का यह धर्म जीवन की यात्रा को एकाकी आगे बढ़ाने का धर्म है। जीवन में प्रतिदिन निरंतर यह भावना भाते रहना चाहिए जिससे एकाकीपन का बोध होता रहे।
इधर दिगम्बर जैन कमिटी रथयात्रा महोत्सव को लेकर जोड़ो-सोरो से तैयारियो में जुट गई है धर्मशाला मंदिर को सजाया गया है और रथ की रंग-रोगन की जा रही है।
पवन कुमार जैन ने बताया कि रथयात्रा धर्मशाला मंदिर प्रांगण से निकलकर बौन्सी बाजार गांधी चौक, बजरंगवली चौक, मारवाड़ी गली होते हुए मधुसूदन मंदिर, बारामती मंदिर, पर्वत रोड होते हुए पापहरणी तक निकली जाएगी।