बाड़मेर। सत्संग में जीवन जीने की कला सिखाई जाती है। जिसे जीवन जीने की कला आ गई उसका जीवन सार्थक हो गया। यह उद्बोधन स्थानीय जैन न्याति नोहरा में गुरूमां साध्वी सुरंजना महाराज ने अध्यात्मिक चातुर्मास 2018 के अन्तर्गत जैन न्याति नोहरा में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा।
साध्वीवर्या ने कहा कि मानव जीवन भी एक गाड़ी है ना जाने किस दिशा में दौड़ रही है जिस तरह बिना ब्रेक की गाड़ी कोई काम की नही उसी तरह मानव जीवन की गाड़ी भी बिना संयम, व्रत-नियम रूपी ब्रेक के कोई काम की नही है ना जाने कब दुर्घटना घट जाए। हम बिना संयम रूपी ब्रेक की गाड़ी चलाकर स्वयं का निरन्तर सजा के भागी बना रहे है। जीवन को चरित्रवान बनाना ही जीवन की सफलता है। मनुष्य जीवन की प्राप्ति के बाद व्रत, नियम जरूरी है, व्रत नियम के बिना ये जीवन बिना लगाम का घोड़ा है।
मनुष्य जन्म चिंतामणि रत्न के समान प्राप्त हुआ है, इस अनमोल रत्न रूपी मनुष्य जीवन को भोग-सुखों में गंवा दिया तो क्या पता ये मनुष्य जन्म वापस कब प्राप्त होगा। जिनवाणी को सुनने के बाद हम समझना नही चाहते, समझने के बाद उसे जीवन में, आचारण में उतारना नही चाहते है। हमारी दशा घाणी के बैल के समान है हम वर्षो से धर्म क्रियाएं करते आ रहे है लेकिन परिणाम का स्तर शून्य है। हमें मोक्ष को प्राप्त करना है तो हमें हमारे जीवन से मोह को हटाना होगा।
साध्वीश्री ने कहा कि हमने अपने जीवन में पुणिया श्रावक से भी अधिक सामायिक कर ली लेकिन हमारा नाम अभी तक हमारा नाम महापुरूषों की लिस्ट में नही आया आज भी हम पुणिया श्रावक की सामायिक को याद करते है लेकिन हमारी सामायिक को कोई याद नही करता है। समता शब्द को उल्टा पढ़ने से तामस पढ़ा जाता है जब तक हमारे जीवन में समता नही है तब तक हमारा जीवन तामस अर्थात् अंधकारमय है। प्रतिक्रमण शुद्ध भाव से करने वाला तीर्थंकर नामकर्म का बंध करता है। साध्वीश्री ने कहा कि जैनधर्म भाव प्रधान धर्म है यहां भावों को महत्व दिया गया है हमारे द्वारा की जाने वाली प्रत्येक क्रिया में भाव जरूरी है।
जीवन जीने की पहली पोथी उमास्वाती महाराज द्वारा रचित वंदितु सूत्र है। जीवन में कर्मबंधन नही किए है तो कर्मो के बंधन को रोकने के लिए प्रतिक्रमण करना आवश्यक है। हम जिनवाणी का श्रवण वर्षों से करते आ रहे है लेकिन जब तक उसे आचारण में नही लायेगे तब तक जीवन की शुद्धि नही हो सकती है। जब तक हमारी क्रियाओं में भावशुद्धि नही होगी तब तक हमारी समस्त क्रियाएं तोता राम रटन के समान है। हमने अपने जीवन में एक बार भी सत्संग किया है तो जब भी कोई हम पाप क्रिया करेगें तो हमें एक बार भान जरूर आयेगा कि मैं जो करने जा रहा वो गलत है।
भावनाधिकार के अन्तर्गत साध्वीश्री ने सागरदŸा का जीवन चरित्र बताते हुए कहा कि सागरदत के जीवन का मात्र एक ही ध्येय था, धन-दौलत रहे या नही रहे लेकिन मेरा धर्म नही जाना चाहिए। वो धन व वैभव का दास नही बनकर धर्म का दास था इस वजह से उसकी प्रशंसा देवलोक में देवता भी करते थे।
चातुर्मास समिति के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ व स्वरूपचंद संखलेचा ने बताया कि गुरूवर्याश्री के श्रीमुख से जिनवाणी का श्रवण करने व उनकी स्नेहल छवि को निहारने के लिए प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुगण उमड़ रहे है। गुरूवर्या के दर्शनार्थ बाहर से पधारे अतिथियों का संघ की ओर से बहुमान किया गया। 2 अगस्त से सिद्धितप की महान तपस्या प्रारंभ हो रही है जिसमें जुड़ने के लिए गुरूवर्या श्री ने सभी को प्रेरणा दी। प्रवचन के पश्चात् चातुर्मास समिति की बैठक गुरूवर्याश्री की निश्रा में आयोजित की गई जिसमें चातुर्मास के दरम्यान होने वाली तपस्या एवं विभिन्न सांस्कृति कार्यक्रमों की सुव्यवस्थित रूप से व्यवस्था के लिए समितियां बनाकर जिम्मेदारियां सौंपी गई। संघपूजन का लाभ सरदारमल सेठिया परिवार धोरीमन्ना वालों ने लिया।
चन्द्रप्रकाश बी.छाजेड़