बिहार स्थित गया शहर में जैन संत बालयोगी आचार्य श्री 108 शीतल सागर जी महाराज के सानिध्य में क्षपकराज मुनि श्री 108 दुर्लभ सागर जी महाराज का दुर्लभ सल्लेखना 98 दिन से चला आ रहा था, जिसमें आज यमसल्लेखना का 7 वां दिन था।
ऐसी दुर्लभ सल्लेखना आज तक नहीं देखा, शरीर के नाम पर केवल अस्थिपंजर व दृढ़ इच्छाशक्ति धन्य है।
महायोगी क्षपकराज व धन्य है निर्यापकाचार्य हे चैतन्य तीर्थ भगवान्!
ऐसे महान दिगम्बर जैन तपस्वी को बारंबार नमन जो इतने कठिन साधना पर 98 दिन से थे और यमसल्लेखना यानि बिना अन्न, जल का 6 दिन, ऐसे महान तपस्वी जैन संत को अरहंत भगवन के समान ही माना जाता है।
वहीं आज गया में करीबन दोपहर के समय क्षपकराज मुनि श्री दुर्लभ सागर जी महाराज का समाधि निर्विघ्न संपन्न हो गया।
गया जैन मंदिर से दोपहर 3 बजे विमान यात्रा (समाधी यात्रा) धूमधाम के साथ निकाली गई।
क्षपकराज जी के समाधि की खबर जैन समाज के बीच पहुँचते ही सभी लोग जुटने लगे थे, धीरे-धीरे तो पुरा जैन समाज के साथ स्थानीय लोगों का भी हुजुम उमड़ पड़ा।
पिछले कई दिनों से शांति पाठ, शांति विधान, णमोकार महामंत्र का जाप तरह-तरह के विशेष अनुष्ठान किया जा रहा था।
इस समाधि महोत्सव की खबर पुरे देश में फैल गई, लोग बहुत-बहुत अनुमोदना भी कर रहे है।
क्षपकराज जी के दर्शन करने गया शहर के अलावे अन्य स्थानों से भी जैन श्रद्धालु पहुँचे।
इस विशाल समाधि यात्रा में जैन समाज लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी थी।
संध्या वेला के पूर्व ही अग्नि संस्कार सहित अन्य संस्कार पूर्ण हुआ।
जैन संतो के समाधि पश्चात उन्हें पालकी पर विराजमान कर समाधि यात्रा निकाली जाती है, अग्नि संस्कार में चंदन, कपूर, नारियल आदि अर्पित किए जाते है।
– प्रवीण जैन