इंदौर। मिथ्यात्व और अज्ञान ही हमारे संसार भ्रमण का कारण है। कर्तव्य और आचरण सहित ज्ञान आत्मा के लिए उपयोगी है। आत्मा का मूल, ज्ञान और दर्शन है। ज्ञान से ही वैराग्य की उत्पत्ति होती है। हमारे जीवन की उपयोगिता यदि ज्ञान मय है तो जीवन सफल है।
ये उदगार सोमवार को मुनि श्री सहज सागर जी महाराज ने समोसरण मंदिर कंचन बाग में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। ज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए मुनि श्री ने कहा कि ज्ञान हमें पाप भीरु, क्षमता वान बनाता है, प्रमाद से बचाता है और विपरीत परिस्थितियों में हमारे अंदर समझ विकसित करता है एवं अहंकार को वश में करने की क्षमता भी रखता है।
आपने कहा कि स्वाध्याय करना ज्ञान का पहला निमित्त बनता है स्वाध्याय ही स्व पर को प्रकाशित करने का साधन है। ज्ञान की अनुभूति शब्दों से नहीं भावों से होती है अपने ज्ञान से अपने परिणामों में क्रिया सहित वृद्धि करें ताकि हम सबका जीवन सफल एवं सार्थक हो सके।
— राजेश जैन दद्दू