Jain Muni Aditya Sagar: शरीर को किराएदार बना के रखो मकान मालिक बनाके नहीं – मुनिश्री आदित्य सागर जी


धन, शरीर, मकान, स्त्री, पुत्र, मित्र सर्वथा अन्य स्वभावी हैं‌। आत्मा से इनका कोई संबंध नहीं है लेकिन मोह के वशीभूत अज्ञानी जीव इन्हें स्व द्रव्य मानकर अपना मानता है जबकि यह हैं नहीं। अंत समय जो आपके साथ सिद्ध अवस्था तक जाएगा इस उद्गार समोसरण मंदिर कंचनबाग मैं श्रुत आराधना वर्षा योग के अंतर्गत शनिवार को श्रुत संवेगी मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि मैं मरूंगा शरीर मरेगा, शरीर मरेगा तो मैं मरूंगा ऐसा सोचने वाला अज्ञानी है। जिस प्रकार आपके शरीर पर धारण किए हुए वस्त्र और शरीर एक नहीं हैं उसी प्रकार यह शरीर और आत्मा भी एक नहीं है अलग अलग ही है। आपने यह भी कहा कि शरीर को किराएदार बना के रखें मकान मालिक बना के नहीं। शरीर से राग भी मत करना शरीर से काम लेना शरीर तो अंत में धोखा ही देकर जाएगा।

धर्म सभा में मुनि श्री अप्रमित सागर जी महाराज ने कहा कि समाज साधु साधु में भेद ना करे।णमो लोए सब्ब साहूणं अर्थात लोक में सभी साधु समान और नमोस्तु किए जाने योग्य हैं।‌ प्रारंभ में श्री निर्मल गंगवाल, आजाद जैन, राजेश जैन दद्दू ने दीप प्रज्वलन कर मुनि श्री के पाद प्रक्षालन किए एवं श्रीमती मुक्ता जैन एवं श्रीमती चंद्रिका जैन ने मुनि श्री को शास्त्र भेंट किए।

— डॉक्टर जैनेंद्र जैन


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