कुछ लोग कहने लगते हैं कि जैन धर्म का प्रारम्भ भगवान महावीर से हुआ किंतु उनके पूर्व 23 तीर्थकर हो चुके थे। कुछ लोग कहते हैं कि जैन धर्म का प्रारम्भ भगवान आदिनाथ से हुआ किंतु उनको यह पता नहीं कि जैन धर्म शाश्वत एवं अनादि अनिधम है। ये उद्गार शनिवार को ऋषभ भवन में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम के दौरान मुनिश्री विराग सागर जी के हैं। उन्होंने कहा कि अवसर्पिणीकाल के पहले तीर्थकर भगवान ऋषभदेव थे, जिनकी आयु 84 लाख वर्ष पूर्व की थी और उनके शरीर की ऊंचाई 500 धनुष थी, उनके दो रानियां नंदा और सुनंदा थी। उनके 101 पुत्र और ब्राहमी एवं सुंदरी नाम की दो पुत्रियां थी।
ज्येष्ठ पुत्र भरत बहुत ही पुण्यशाली था। उन्हें चक्रवर्ती पद प्राप्त हुआ था। आज हम जिसे विश्व कहते हैं, वह तो आर्थखण्ड का छोटा सा हिस्सा है। चक्रवर्ती के पास सम्पूर्ण आर्थदण्ड और पांच ग्लेक्षखंडों का राज्य था और उस पर उनका अधिपत्य स्थापित था। उन्होंने एक-एक कर सारी बातों बतायी और कहा कि भरत चक्रवर्ती के नाम से ही देश का नाम भारत पड़ा। इसके पूर्व देश का नाम अजनाब वर्ष था। आदिनाथ ने अपने सभी पुत्रों को 72 तथा पुत्रियों को 64 तरह की कलाओं से निपुण किया था। आज हम सभी उनके उपदेशों और उनके बताये मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल कर रहे हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाज के लोगों सहित अन्य लोग भी मौजूद थे।