जैन धर्म के 45 ग्रंथों सहित झारखंड की राजधानी रांची में जैन श्वेतांबर तपागच्छ समुदाय के आचार्य श्री विजय कीर्ति यश सूरीर जी महाराज के दिशा-निर्देशन में अति प्राचीन जैन ग्रंथों, आगमों को लंबे समय तक सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए ताड़पत्रों पर उकेरने का काम तेज गति से चल रहा है। जैन धर्म के लगभग 45 आगमों सहित 96 धर्म ग्रंथों के श्लोकों को ताड़पत्रों पर लिखने का कार्य 20 वर्षो से ओड़ीसा में लगातार चल रहा है, जो लगभग 99 प्रतिशत पूर्ण हो गया है। अब श्लोकों का संपादन कार्य किया जा रहा है। इस कार्य से जुड़े सूरत के मुनेश भाई ने बताया कि वि में पहली बार अति प्राचीन पौराणिक विधि से जैन धर्म की वाणियों को ताड़ पत्रों पर उकेरा जा रहा है। इसके लिए श्रीलंका से श्रीपत्र और दक्षिण अफ्रीका तथा ओड़ीसा के ताड़पत्रों का उपयोग किया जा रहा है। इन्हें सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए सम्मेद शिखर, पालिताना सहित नासिक के वणीगांव (सतपुड़ा) और हस्तगिरि में बंकर बनाने की योजना है। इसके लिए कुशल इंजीनियर्स की टीम ने अपना काम करना शुरू भी कर दिया है। अभी तक लगभग आठ करोड़ श्लोकों को ताड़पत्रों पर उकेरा जा चुका है। इसके लिए लगभग 300 पुरुष और स्त्री काम पर लगे हैं। कार्यरत सभी पुरुष और स्त्रियों को मेहनताना, उनके रहने की व्यवस्था के अलावा कार्यरत सभी लोगों का स्वास्थ्य बीमा भी ट्रस्ट द्वारा कराया गया है। एक श्लोक लिखने में 10 रुपये का खर्च आता है।
कैसे होता है ताड़ पत्र पर लेखन : इसकी शुरूआत 1995-96 में हुई थी। प्रचीन काल में धर्म ग्रंथ, आदि को लिखने के लिए इनका प्रयोग किया जाता था। ताड़ पत्र एक विशेष पेड का बड़ा पत्ता होता है। ताड़ पत्र पर पहले तो अक्षरों को कुरेदा जाता है और उकेरने के बाद फिर उसमें स्हायी भर दी जाती है। ताड़पत्र काफी लंबे समय तक सुरक्षित और संरक्षित इसलिए रहते हैं क्योंकि न को इसमें कीड़ा लगता है और न ही लिखे हुए अक्षर कभी मिटते हैं।