मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज मंडी बामोरा से विहार कर बीना पहुंचे


बीना। गुरूवार काे मंडीबामोरा से विहार कर बीना पहुंचे 108 मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज एवं 108 मुनिश्री अरहसागर जी महाराज की श्रद्धालुओं ने अभूतपूर्व अगवानी की। इस दौरान नमाेस्तु, नमाेस्तु महाराज जी की ध्वनि गूंजती रही तो श्रद्धालु नतमस्तक हाेकर मुनिश्री के चरणस्पर्श करते रहे। मुनिसंघ काे मंदिर तक लाने के लिए श्रद्धालुओ ने  मंगलध्वनि के साथ शोभायात्रा निकाली।

श्रद्धालुओ ने घराें के सामने रंगाेलियां सजाईं, मुनिसंघ के पद प्रक्षालन किये। महिलाएं अपने सिर पर मंगल कलश लिए चल रह थीं, नवयुवक मंडल हाथ में धर्म ध्वजा लिए आचार्यश्री विद्यासगर जी महाराज के जयकारा लगा रहे थे। सीनियर पाठशाला के पुरूष सिर पर टोपी लगाकर चल रहे थे। मुनि संघ छोटी बजरिया के चंद्रप्रभ जिनालय में दर्शन वंदन करने पहुंचा, उसके बाद बड़ी बजरिया जैन मंदिर से होते हुए इटावा जैन मंदिर से मुख्य मार्ग से हाेकर कार्यक्रम स्थल कच्ची रोड पर स्थित नाभिनंदन जैन स्कूल परिसर में पहुंचा। उसके बाद मुनिश्री ने प्रवचन दिए।

नजरें बदलिए नजारे बदलेंगे, स्वीकार्यता में सहजता को अपनाइए: मुनिश्री प्रमाणसागर

नाभिनंदन जैन स्कूल परिसर में प्रवचन देते हुए मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज ने कहा कि शांति के लिए 4 सूत्र जरूरी हैं। पहला स्वीकार्यता, दूसरा अनिवार्यता, तीसरा प्रतिकूल परिस्थितियों की अनुकूल व्याख्या, चाैथा नजरें बदलिए नजारे बदलेंगे एवं स्वीकार्यता में सहजता को अपनाइए। परिस्थितियां न हमें सुखी बनाती है और न हमें दुःखी बनाती हैं, वस्तुतः सुखी और दुःखी यदि हमें कोई करता है तो वह हमारा मन करता है।

यदि हम अपनी मनःस्थिति को ठीक बनाने में सक्षम हो जाएं, तो जीवन मंे चाहे कितना भी अभाव हो, चाहे कितनी भी अल्पता हाे, चाहे कितना भी संकट हो, चाहे कितनी भी परेशानी हो, हम अपने मन को ठीक बना सकते हैं और अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं। उन्हाेंने कहा कि पहला सूत्र जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। वह है- स्वीकार करना। कोई भी दुःख आए, कैसी भी परिस्थिति आए, कोई भी बात हो, स्वीकार करो। ठीक है, जो है सो सामने है। आप लोग क्या करते हो, स्वीकार करते हो? तुम स्वीकार नहीं करते, प्रतिकार करने की कोशिश करते हो। प्रतिकार करोगे, दुख बढ़ेगा और स्वीकार करोगे तो दुख तुरन्त आधा हो जाएगा। मन को सुधार लो, जो मिले उसे स्वीकार लो।

आज से सूत्र बनाओ, जीवन में मेरे सामने जो भी स्थिति होगी मैं उसे स्वीकार करूंगा। स्वीकार करते ही जीवन की दिशा और दशा परिवर्तित हो जाती है। अपनी सोच की दिशा में परिवर्तन जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। जब भी हमारे जीवन में दुःख का प्रसंग आए, प्रतिकूल स्थितियां आएं, हम उनकी व्याख्या अनुकूल करना शुरू कर दें। सारा खेल तो सोच का है। उल्टे नजरिए को हम सीधे से भी देख सकते हैं।

उन्हाेंने कहा कि पहली बात मैंने आपसे कही स्वीकार कीजिए, दूसरी बात सुधार कीजिए। सामने वाले का नहीं, स्वयं का। किसका सुधार करना है, मन का, विकृत विचारों का। व अपनी सोच बदलो। जो मेरा है वह जा नहीं सकता और जो जाता है वह मेरा हो नहीं सकता। तीसरी बात जो सामने आया है उसकाे एन्जाॅय करो(उसका आनन्द लो) एन्जाॅय करना सीखो, उसका आनंद लो, उसका रस लो। जीवन में सब तरह के प्रसंग आते हैं। कभी खट्टे भी आते हैं, कभी मीठे भी आते हैं। ये जीवन का सिद्धान्त है, जीवन में सुख आए तो और जीवन में दुःख आए तो, दोनों का रस लेना सीखिए, दोनों का आनंद लेना सीखिए क्योंकि ये भी मेरे जीवन का एक अंग है।संचालन मुनिश्री के संघस्थ ब्रम्हचारी विमल भैयाजी ने किया ।

 

— अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी


Comments

comments