जंगल वाले बाबा छपकराज मुनि चिन्मय सागर महा मुनिराज का मृत्यु महोत्सव हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न


भारत वसुन्धरा पर चित्र की नही चरित्र की पूजा आराधना स्तुति बन्दना की जाती है। जीवन तो सभी जीते है जो जीवन को जीवंत कर दे वही जीवन सार्धक है।भारत मे समय समय पर अनेक ऋषि मुनि संत महात्मा दिव्य महान पुरुषों का आवरण हुआ है ।ऐसे ही एक दिव्य विभूति परम् पूज्य पूज्य गुरुदेव चिन्मय सागर जी महाराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर कुछ भी बोलना लिखना सूर्य को दीपक की रोशनी दिखाने के बराबर है ।

साधारण से शरीर वाले व्यक्ति का असाधारण व्यक्तित्व होता है तथा जीवन में जो भी एक बार उनके संपर्क में आता वो गुरु का होकर रह जाता है परम पूज्य मुनि चिन्मय सागर जी महाराज के हृदय में वात्सल्य,प्रेम ,स्नेह, करुणा कूट-कूट कर भरी थी कर्नाटक प्रांत के जिला बेलगाम के अंतर्गत छोटे से ग्राम जुगुल में देव शास्त्र गुरु के परम भक्त उदार मना व्यवहार कुशल श्री अनंत मोले जी धर्मनिष्ठ सद ग्रहणी संस्कारवान श्रीमती हीरा देवी मोले के घर आंगन में दिनांक 06.08.1961 को श्री धनेंद्र कुमार जी जैन का जन्म हुआ।

शिक्षा हाएर सेकेंडरी तक रही आपने ब्रह्म चर्य व्रत 1982 में अंगीकार किया एव आपका 9 जुलाई 1987 अतिशय क्षेत्र धुबोनजी में संत शिरोमणि विद्यासागर जी महाराज के संघ में प्रवेश हुआ । आपकी दीक्षा सोनागिरी जैन मंदिर सेवनी मध्य प्रदेश में संत शिरोमणि आचार्य 108 विद्यासागर जी महाराज के वरद हस्त सिद्ध कर कमलो से दिनांक 31.03. 1988 को हुई। आपने अपने सम्पूर्ण चातुर्मास अलग अलग जगह बीहड़ जंगलो में हिंसक जंगली जानवरों के बीच किया। आप तप त्याग संयम की साक्षात मूर्ति थे। आपका एक वर्षायोग ऐतिहासिक कोटा बोराबास (रावतभाटा रोड) के जगलो में हुआ। यहाँ हजारो भील मीणा गुजरों को अण्डा माँस मछली का त्याग करवा दिया। वहाँ मै पारस जैन “पार्श्वमणि”पत्रकार रोज दर्शन को जाया करता था गुरुदेव के पैर पकड़ कर एक ही विनंती हर बार करता था कि गुरुदेव एक टी वी चेनल खुलवा दो। गुरुदेब ने पारस टी वी चेनल दे दिया।

एक बार बड़ौत (उत्तर प्रदेश ) में सबके सामने मुझे बुलाकर कहा कि देख पारस तेरे नाम को विश्व के घर घर मे पहुँचा दिया। मेने गुरुदेव के चरणो को छूते हुवे भीगी आँखों से उन्हें देखते हुवे कहा कि गुरुदेब मुझे नही तीर्थ राज सम्मेद शिखर जी मे विराजमान पारसनाथ बाबा को घर घर पहुँचाया है। जैन धर्म दर्शन का प्रचार प्रसार किया हैं। यही भावना थी जो आपने पूरी की। युगों युगों तक आपका यह उपकार लोग याद रखेंगे। आपकी कठोर साधना देखते ही बनती थी। आप मधुर भाषी वात्सल्य करूणा की साक्षात मूर्ति थे। आपने लाखो लोगो को शाकाहारी ,संयमी ,व्यसन मुक्त बनाया है।

श्रवणबेलगोला महामस्तकाभिषेक 2018 में आपने उपस्थित होकर आयोजन की गरिमा बढ़ा दी थी । आपकी समता पूर्वक समाधि आपके जन्म स्थान जुगुल में दिनांक 18 अक्टूबर 2019 को सायंकाल 6:17 पर यम सल्लेखना पूर्वक हुई आपकी 33 वर्ष की साधना और तीन आचार्य महाराज 13 साधु संत तीन भट्ठारक एवं अनेक त्यागी वृति की उपस्थिति में 33 दिन तक उत्क्रष्ट सल्लेखना पूर्ण समाधि मरण को प्राप्त होना दुर्लभ सहयोग है। दूसरी बात जहां गुरु देव का जन्म हुआ वही पर ही उनका अंतिम समय बिता। यह भी दुर्लभ योग की बात है।

— पारस जैन पार्श्वमणि


Comments

comments