बता दें कि संघवी परिवार का 13 वर्षीय बेटा संयम संघवी गत वर्ष तक स्वामी विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल का छात्र था। एक दिन अचानक उसने स्कूल की पढ़ाई से स्वयं को दूर कर लिया और ज्यादा से ज्यादा समय महाराज नयन चंद्र जी के सानिध्य में गुजारने लगा। अन्य बच्चों की तरह संयम भी खेलकूद का लुफ्त उठाता था किंतु महाराज जी के नजदीक रहने के कारण स्वत: ही उसका मन खेलकूद में कम हो गया। यहां तक कि अब उसके मन में मोबाइल फोन तक की अभिलाषा नहीं रह गई है। संयम के पिता जयेश सिंघवी और मां हेतल सिंघवी ने कहा कि जब हमारा बेटा ही हमारे पास नहीं रहेगा तो किसके लिए जीयेंगे। इसलिए हमने भी दीक्षा लेना का फैसला कर लिया।
अब पूरा परिवार दीक्षा लेने के अपने फैसला पर खुश और उल्लासित है। बता दें कि संघवी परिवार ने अपना फ्लैट तीर्थ यात्रियों के लिए अर्पित कर दिया है जबकि अपने गहने अपने माता-पिता को सौंप दिये हैं तथा 5 लाख नगद का उपयोग दीक्षा समारोह के लिए किया जाएगा। दीक्षा लेना एक ऐसा कर्मकांड है, जिसमें व्यक्ति अपने सांसारिक सुखों को त्यागने का फैसला कर लेता है और किसी भी प्रकार की धन-दौलत, सम्पत्ति, पारिवारिक रिश्तों आदि बंधनों से स्वयं को मुक्त कर लेता है और धार्मिक प्रभावना के लिए पूरे देश में विचरण करता है।