जैन आचार्य जिनके संघ में शामिल है 55 जैन संत, देश का दूसरा सबसे बड़ा मुनिसंघ


बांसवाड़ा। महज 19 साल में ही ली मुनि दीक्षा। 33 की उम्र में बन गए आचार्य और अब देश का दूसरा सबसे बड़ा मुनिसंघ है। हम बता  रहे हैं। राष्ट्रीय संत आचार्य सुनील सागरजी महाराज की, जिनके नेतृत्व में देश का दूसरा सबसे बड़ा मुनि ससंघ इन दिनाें बांसवाड़ा में है। इस संघ में 55 संत शामिल हैं। जिनमें 24 मुनि, 7 क्षुल्लक, 22 आर्यिका और 7 क्षुल्लिकाएं हैं। 5 मुनि अन्यत्र प्रवासरत हैं।

साधना और नियमों के पक्के सुनील सागरजी के सांसरिक पिता भागचंद्र भी इस ससंघ में शामिल है। उन्हें क्षुल्लक श्री 105 सुखद सागरजी महाराज  नाम से जाना जाता है। वे तीन साल बाद बांसवाड़ा फिर से आए हैं। इससे पहले उन्होंने 2016 में बाहुबली कॉलोनी में चतुर्मास किया था। देश में सबसे ज्यादा संतों का संघ आचार्य विराग सागरजी का है। इसमें 64 संत शामिल हैं। वे भी बांसवाड़ा आ चुके हैं। वे 2010 में बांसवाड़ा ससंघ आए थे, उस समय उनके साथ में 79 संत थे। इसके बाद बाल ब्रह्मचारी संघ नायक आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महा मुनिराज संघ तीसरा सबसे बड़ा माना जाता है। जिसमें 39 जैन संत हैं। तीनाें आचार्य काे राष्ट्रसंत का दर्जा प्राप्त है। वहीं ये जहां भी प्रवास करते हैं ससंघ करते हैं। अलग-अलग जगह पर अन्य लाेग जाे इस मार्ग पर चलना चाहते हैं, इनसे जुड़ते रहते हैं। इसके बाद उन्हें दीक्षा दी जाती है।

मुनियों की पाठशाला: सुबह तीन बजे होता है संतों का स्वध्याय, दिन में दो बार लगती है क्लास

आचार्य सुनील सागरजी अपने संघ के संतों को ज्ञान बांटने के लिए हर रोज दिन दिन में दो बार क्लास लेते हैं।

बेटा आचार्य, पिता क्षुल्लक: पिता ने जीना सिखाया, 2 साल पहले उन्हें दीक्षा देकर जीवन तारना सिखा रहे हैं आचार्य

मां के बाद यदि बच्चे का दूसरा काेई गुरु माना गया है ताे वह पिता है। जाे उसे संस्कार और जीवन जीना सिखाता है। लेकिन उस जीवन काे कैसे तारना है यह गुरु सिखाता है। ऐसा बहुत ही कम हाेता है कि काेई बेटा अपने पिता का गुरु बन जाए। ऐसा ही बांसवाड़ा में ससंघ पधारे आचार्य सुनील सागरजी के साथ है। बचपन में जिस पिता ने उन्हें पढ़ना- लिखना सिखाया। जीवन जीना सिखाया। अब आचार्य सुनील सागरजी उन्हें जीवन तारना सिखा रहे हैं।

दरअसल आचार्य सुनील सागरजी के सांसारिक पिता भागचंद ने उनसे ही दाे साल पहले प्रतापगढ़ में महावीर जयंती के दिन दीक्षा ली और उनके संघ में शामिल हाे गए। वह उनके संघ में सबसे छाेटे संत के पद पर क्षुल्लक सुखद सागरजी के नाम से प्रसिद्ध है। आचार्य बताते हैं कि उन्होंने पढ़ाई करते-करते साढ़े 19 साल की उम्र में ही महावीर जयंती पर आचार्य सन्मति सागरजी महाराज के सानिध्य में 20 अप्रैल 1997 में मुनि दीक्षा ले ली थी।

इसके बाद वे 12 साल तक उनके साथ रहे। इसके बाद वह धर्म के लिए लाेगाें काे जागरूक करने के लिए अलग-अलग जगह जाने लगे। उनके परिजन अलग-अलग जगह उनके दर्शन के लिए आते रहे। जब वह उदयपुर में थे, तब उनके सांसारिक पिता उनके दर्शन के लिये आए और 2003 में व्रती जीवन स्वीकार किया। 2011 में उनकी मां का देहावसन हाे गया। इसके बाद उनके पिता ने भी प्रतापगढ़ में 2017 में महावीर जयंती पर आचार्य से दीक्षा ली।

आचार्य सुनील सागरजी संघ में शामिल सभी संताें काे शिक्षा देने के लिए दिन में दाे बार पाठशाला लगाते हैं। इसके बाद सभी संत सुबह तीन बजे जागकर स्वाध्याय करते हैं। इस क्लास में उन्हें दिगंबर ज्ञान कराया जाता है। इसमें बताया जाता है कि काेई भी परिस्थिति आ जाए लेकिन ब्रह्मचर्य और संयम से विचलित नहीं हाेना चाहिए। इसके अलावा साधना का कितना महत्व है। जिसमें सभी धर्माें का ज्ञान दिया जाता है।  क्योंकि गुरु और संत सभी काज्ञान  हाेता है। वाे धर्म में बंधा नहीं हाेता है। इंद्रियों काे ज्ञान, वैराग्य और संयम से जीता जा सकता है।

 

देश में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा संतों का संघ आचार्य विद्यासागरजी माना जाता है। जिसमें 39 जैन संत हैं।

 

— अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी


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