अंतरराष्ट्रीय विश्व योग दिवस की पूर्व संध्या पर जिन फाउंडेशन नई दिल्ली के द्वारा ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसका मुख्य विषय जैन योग था।
इस सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्री लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के जैन दर्शन विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रोफेसर वीर सागर जैन नई दिल्ली ने कहा की जैन योग की परंपरा अत्यंत प्राचीन है तथा इस बात के अनेक प्रमाण हैं कि तीर्थंकर ऋषभदेव सबसे प्रथम योगी थे । उन्होंने कहा कि जैन योग की प्राचीनता इस बात से ही सिद्ध होती है कि किसी भी जैन तीर्थंकर योगी की मूर्ति मात्र पद्मासन या खड्गासन मुद्रा में ही प्राप्त होती है अन्य किसी आसन में नहीं मिलती है।
द्वितीय मुख्य वक्ता
यूएसए में टैक्सास यूनिवर्सिटी के फिलॉसफी एंड रिलीजन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर पंकज जैन ने जैन योग की विशेषताएं बतलाते हुए कहा की पांच महाव्रत ही यम है तथा नियमों की चर्चा भी भगवती सूत्र में प्राप्त होती है ।जैन आचार संहिता योग की सबसे बड़ी आधार भूमि है ।उन्होंने पॉवर पॉइंट के माध्यम से अपनी बात को प्रस्तुत किया ।
तृतीय मुख्य वक्ता
सांख्य योग शास्त्र विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रोफेसर मार्कंडेय नाथ तिवारी जी ने जैन योग की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए अनेक जैन ग्रंथों का उल्लेख किया जिनका संबंध योग विद्या से है उन्होंने कहा जैन आचार्यों का जीवन और उनकी ज्ञानसाधना योग की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है । उन्होंने कहा कि जैन योग परंपरा को समझे बिना भारतीय परंपरा को पूर्ण रूप से नहीं समझा जा सकता ।
अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के जैन दर्शन विभाग के पूर्व अध्यक्ष राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित प्रोफ़ेसर फूल चंद जैन प्रेमी जी ने जैन परंपरा में योग की प्राचीनता को उजागर करते हुए कहा कि वर्तमान में अनेक जैन साधु योग की अनेक नई पद्धतियों को प्राचीन परंपरा के अनुसार जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं जोकि महत्वपूर्ण है ।
संपूर्ण सम्मेलन का संचालन योग शोध अध्येता श्रीमती रुचि अनेकांत जैन ने अत्यंत कुशलता के साथ करते हुए अपने वक्तव्य में कहा की आचार्य उमास्वामी ने तत्वार्थसूत्र में जो प्रथम सूत्र कहा है सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग: इसी सूत्र को यदि हम इस प्रकार करें कि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि योगमार्ग:
तो हम जैन योग के मर्म को और उसके सिद्धांत को आसानी से समझ सकते हैं ।
उन्होंने आज योग विद्या के पाठ्यक्रम में जैन योग को भी सम्मिलित करने की मांग की और सभी विद्वानों से निवेदन किया की योग के क्षेत्र में जैन योग को अवश्य सम्मिलित किया जाए और उसका अध्यापन भी अवश्य किया जाना चाहिए ।
इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण जिन फाउंडेशन के फेसबुक पेज पर भी किया गया । जिसे हजारों लोगों ने देखा तथा प्रतिभागिता की ।
— रुचि अनेकांत जैन