इंदौर। संसार की संपूर्ण संपत्ति केवल धर्म है जो विनय से प्राप्त होती है। जैसे ही विनयी प्राणी विनय को प्राप्त होता है उसे के मोक्ष का द्वार खुल जाता है। आप चाहते हैं कि आप का कल्याण हो तो अपने व्यवहार में विनय लाऐं। आज कल्याण का मार्ग बताने वाले अरहंत, सिद्ध हैं नहीं आचार्य, उपाध्याय, दिख रहे हैं लेकिन उनके प्रति आप में ना तो विनय का भाव है और न ही उनके चरणों में आप जाना चाहते हैं तो कल्याण कैसे होगा ?
यह उद्गार मुनि श्री अप्रमितसागर जी महाराज ने मंगलवार को समोसरण मंदिर कंचन बाग में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। आपने कहा कि लोग जिनेंद्र देव की मुद्रा जो पाषाण की मूर्ति में दिखती है उसके समक्ष तो झुक जाते हैं लेकिन साक्षात चैतन्य मूर्ति दिगंबर मुद्रा मुनि, आचार्य जहां विराजमान होते हैं तो उनके सामने कोई विनय पूर्वक झुकना नहीं चाहता। प्रभु और गुरु के चरणों में झुकोगे तो किसी के सामने झुकना नहीं पड़ेगा। गुरु चरणों में जब भी जाएं विनयवान और निरभिमानी बनकर जाना तभी वह प्राप्त कर पाओगे जो प्राप्त करना चाहते हो।
मुनि श्री ने आगे कहा कि जिसके परिणाम निरग्रंथ दिगंबर मुनियों के पास जाने के रहते हैं तो वह सम्यक दृष्टि अन्यथा मिथ्या दृष्टि है। जिस प्रकार दीपक जलाते समय बिना तेल के ज्योति प्रज्वलित नहीं होती उसी प्रकार बिना विनय के आपके केवल्य की ज्योति भी प्रज्वलित नहीं होगी।अतः मोक्ष फल को प्राप्त करने के लिए विनय को धारण करें प्रारंभ प्रारंभ में स्वतंत्र भैया, भरत भैया, बाहुबली भैया, डी के सराफ ने मांगलिक क्रियाएं संपन्न की। सभा में पंडित रतनलालजी शास्त्री, मुकेश बाकलीवाल, जीवनलाल जैन आदि समाज जन भारी संख्या में उपस्थित थे धर्म सभा का संचालन हंसमुख गांधी ने किया।
— राजेश जैन दद्दू