कुण्डलपुर की गौरव गाथा का आयोजन 14 सितम्बर रात्रि 8.30 बजे से दसलक्षण पर्व पर नियमित रूप से चल रहे सायंकालीन धार्मिक कार्यक्रमों की श्रृंखला के अंतर्गत हुआ। कार्यक्रम में भक्ति नृत्य नाटिका के माध्यम से बड़े बाबा भगवान आदिनाथ की गौरव गाथा का मंचन किया गया। जिसे देख लोग भाव विभोर हो गए और जयकारों से माहौल भक्तिमय बना दिया। इस गौरव गाथा में बड़े बाबा की प्रतिमा की खोज, पहचान एवं उनके उच्च आसन पर प्रतिष्ठित होने से जुड़े हुए कई कहे व अनकहे किस्सों का नाट्यांकन किया गया। इस गाथा में उस संकल्प को जीवंत किया जिसे आचार्य सुरेंद्र कीर्ति ने 17वी शताब्दी में लिया था। इस नाट्यमंचन में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के बीसवीं सदी में बड़े बाबा को उच्च आसन पर बिठाने के लिए व उनके द्वारा भव्य मंदिर निर्माण के प्रयासों को जीवंत भाव से मंच पर प्रस्तुत किया गया।
इस नाटक के माध्यम से समाज के लोगो को अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में जानने का अवसर मिला। मंचन से दर्शकों के मन में अत्यंत हर्ष एवं श्रद्धा का उदभव हुआ। श्रीमती रेनू जैन, श्रीमती बबिता जैन, एवं संकल्प श्री महिला मंडल के अन्य सदस्यों के लगभग दो महीनो के कठिन प्रयासों से इस नाटिका का भव्य मंचन किया गया। इस नाटिका के पात्र जैन समाज के छोटे बच्चों द्वारा निभाए गए। इस प्रयास के लिए संकल्प श्री महिला मंडल की बहुत प्रशंसा हुई।
संकल्प श्री महिला मंडल की स्थापना 27 फरवरी 2016 को मुनि श्री संकल्प भूषण जी महाराज द्वारा की गई थी। इस महिला मंडल का मुख्य उद्देश्य जैन मुनियों की सेवा करना, उनके आहार और विहार का खास ध्यान रखना है। इसके साथ-साथ यह मंडल जिनवाणी की सुरक्षा, संरक्षण और उनके प्रचार-प्रसार का कार्य भी करती है। इनके द्वारा मंदिर जी में श्रुत पंचमी के अवसर पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी शुरू किया गया। इन दिनों में, मंडल 48 महीनों तक हर महीने 48 दीपकों के साथ भक्तामर पाठ का आयोजन कर रहा है, जिससे जैन धर्म की धार्मिक गतिविधियों को निरंतर बनाए रखने में यह मंडल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
संकल्प श्री महिला मंडल के विशिष्ठ सदस्य श्रीमती रेनू जैन, श्रीमती बबिता जैन एवं कार्यकारिणी के अन्य सदस्याएं बीना जैन , गीता जैन, मोनिका जैन , पूनम जैन, रजनी जैन , रेणुका जैन, सारिका जैन, सुमन जैन, सुषमा जैन के द्वारा निस्वार्थ सेवा, समर्पण और धर्म के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा से समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। उनके द्वारा मुनियों की सेवा और जिनवाणी की रक्षा के प्रयास अत्यंत सराहनीय हैं, जो जैन धर्म की परंपराओं और मूल्यों को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।