ललितपुर। जैन समुदाय का पर्यूषण (दसलक्षण पर्व) महापर्व आज 3 सितम्बर से शुरू हो रहा है जो दस दिन तक चलेगा। इस पर्व को दसलक्षण महापर्व भी कहा जाता है। इस दौरान जनपद के सभी जिनालयों में दसलक्षण पर्व की विशेष पूजन-आराधना की जाएगी। इस दौरान संतों , बाहर से आमंत्रित विद्वानों द्वारा प्रतिदिन प्रत्येक धर्म पर प्रवचन होंगे। श्रद्धालु इस दौरान व्रत, उपवास रखेंगे। नगर के अटा जैन मंदिर, क्षेत्रपाल, आदिनाथ मंदिर, समवसरण मंदिर, शांतिनाथ मंदिर नई बस्ती, पार्श्वनाथ मंदिर इलाइट, बड़ा मंदिर, नया मंदिर, सिविल लाइन मंदिर, बाहुबली नगर, डोडाघाट आदि जैन मंदिरों की विशेष सजावट की गई है।
अटा जैन मंदिर में चतुर्मासरत आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी महाराज के मङ्गल प्रवचन प्रतिदिन क्रमशः दस धर्मों होंगे। इस बीच अनेक सांस्कृतिक आयोजन भी होंगे। महरौनी, मड़ावरा में मुनि श्री सुप्रभ सागर जी के सान्निध्य में, तालबेहट, नवागढ़ में मुनि श्री सरल सागर जी के सान्निध्य में, पवा जी , पाली आदि में इस पर्व को अगाध श्रद्धा आस्था से मनाया जाएगा। त्याग और संयम के इस पर्व को मनाने के प्रति श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह है। पर्व के इन दस दिनों में सुबह से लेकर रात्रि तक सभी मंदिरों में विविध धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजन होंगे।
आचार्य श्री विनिश्चय सागर बताते हैं कि संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र महापर्व पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत-उपवास रखते हैं।पर्व के ये दिन खाने-पीने मौज मस्ती के नहीं बल्कि त्याग और संयम के होते हैं।यह पर्व जीवमात्र को क्रोध, मान,माया,लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, असंयम आदि विकारी भावों से मुक्त होने की प्रेरणा देता है। उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव शौच, सत्य, सयंम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ये दश धर्म हैं। दस दिन तक इन धर्मों की क्रमशः आराधना की जाती है।
जैनदर्शन के अध्येता डॉ. सुनील संचय इस पर्व के महत्त्व के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि यह पर्व जीवन में नया परिवर्तन लाता है।
दस दिवसीय यह पावन पर्व पापों और कषायों को रग -रग से विसर्जन करने का संदेश देता है। यह एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है। पर्युषण आत्म जागरण का संदेश देता है और हमारी सोई हुई आत्मा को जगाता है। यह आत्मा द्वारा आत्मा को पहचानने की शक्ति देता है। मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं तथा अभिषेक-शांतिधारा, विशेष पूजन, विधान करते हैं। इस दौरान जैन व्रती कठिन नियमों का पालन भी करते हैं ,जैसे बाहर का खाना पूर्णत: वर्जित होता है, दिन में केवल एक समय ही भोजन करना, हरी का त्याग आदि। बड़ी संख्या में साधक दस दिन तक निर्जला उपवास भी रखते हैं। मानवीय एकता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, मैत्री, शोषणविहीन सामाजिकता, अंतरराष्ट्रीय नैतिक मूल्यों की स्थापना, अहिंसक जीवन आत्मा की उपासना शैली का समर्थन आदि तत्त्व पर्युषण महापर्व के मुख्य आधार हैं।
आज की दौड़-भाग भरी जिंदगी में जहां इंसान को चार पल की फुर्सत अपने घर-परिवार के लिए नहीं है, वहां खुद के निकट पहुंचने के लिए तो पल-दो पल भी मिलना मुश्किल है। इस मुश्किल को आसान और मुमकिन बनाने के लिए जब यह पर्व आता है, तब समूचा वातावरण ही तपोमय हो जाता है। संक्षेप में पर्यूषण महापर्व (दसलक्षण धर्म) का तात्पर्य है पुरानी दिनचर्या का बदलना, खान-पान और विचारों में परिवर्तन आकर मन सद्भावनाओं से भर जाना। विकृति का विनाश और विशुद्धि का विकास करना ही इस पर्व का ध्येय है।
— डॉ. सुनील जैन संचय