मेरठ के फफूड़ा स्थित एक कालेज में आयोजित धर्मसभा में बोलते हुए मुनिश्री ज्ञानसागर जी ने कहा कि धर्म मनुष्य को जीने की कला सिखाता है। धार्मिक आचरण ही युवाओं और बच्चों को उनके जीवन की सार्थकता का बोध करा सकता है। इसलिए हर अभिभावक का दायित्व है कि वह अपने बच्चों को धर्म के मार्ग पर अग्रसर करें। धर्म के महत्व का बोध होने पर ही सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन और समाज में नैतिक मूल्यों का विकास कर सकते हैं क्योंकि सुस्कारिक युवाओं से ही एक सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण संभव है। यदि युवा अहिंसा, त्याग और परोपकार के मार्ग पर चलेगा, वह ही आत्मिक सुख का आभास करा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि समाज में खासकर युवाओं को धर्म की महत्ता का बोध नहीं होगा तो वह समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों का निवर्हन कतई नहीं कर सकता। युवाओं में नैतिक मूल्यों के साथ भारतीय संस्कृति के प्रति भी समर्पण का भाव होना चाहिए। उन्होंने खासकर युवा पीढ़ी को कहा कि आज की युवा पीढ़ी फास्ट फूड की तरफ आकषिर्त हो रही है, जिससे उनका स्वास्थ्य गिर रहा है। इससे मानसिक तनाव के चलते अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि परिवार में लाख वैचारिक मतभेद हों कि उसके बावजूद भी वह माता-पिता और सभी बुजुगरे का सम्मान करेंगे, तभी उनका जीवन सुखमय होगा।
उन्होंने विज्ञान और संचार क्रांति के ऊपर कहा कि आज आधुनिक तकनीक का दुरुपयोग हो रहा है। इंटरनेट का बेजा इस्तेमाल से छात्र-छात्राओं में असुरक्षा का वातावरण पनप रहा है और नैतिक पतन भी हो रहा है। माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चों को मंदिर तक ले जाएं और उन्हें धर्म से जोड़े। उन्हें संतों के मार्गदर्शन में जीवन जीने की कला सिखाएं। भारतीय संस्कृति युवाओं के जीवन को सार्थक प्रेरणा का स्रेत है। इन चुनौतियों से निपटने में अहिंसात्मक जीवन शैली और मानवीय मू्ल्यों को लेकर सजगता जरूरी है। धर्मसभा में प्रेमचंद्र जैन, विद्या जैन, हंस कुमार जैन, अतुल जैन, पंकज कुमार जैन, नीरज जैन, सुनील जैन, सचिन जैन, अमित जैन, रजत जैन, संजय जैन उपस्थित थे।