सागर। कोई तुम्हारा अपमान करे तो तुम उसे नजरअंदाज करो तो तुम्हारे अंदर विनम्रता बढ़ेगी। मन को जीतने का अभ्यास करना चाहिए। आज जो परिवार टूट रहे हैं उसकी मुख्य वजह यही है कि छोटी-छोटी बातों को लेकर के ईगो पॉइंट से ऐसा हो रहा है। यह बात मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में लाइव प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को हर कार्य में जो कुछ हूं मैं हूं, यह सब मान के कारण हो रहा है। अच्छे व्यक्ति की यह पहचान नहीं है जो भीतर होता है वही बाहर प्रकट होता है। यह हमारी भाव धारा के पतन का प्रतीक है मुझे हमेशा नम्र रहना चाहिए। भाव यात्रा से भव यात्रा चलती है। जीवन भाव यात्रा पर चलता है भावों के उतार-चढ़ाव के विज्ञान को जो जानते हैं वे जीवन में ठहराव लाते हैं जो नहीं जानते हैं वह भटकाव में रहते हैं। मानी हमेशा अपना मान चाहता है और वह दूसरों का अपमान भी करता है। उन्होंने कहा कि भावों को नियंत्रित करने वाले लोग शिखर पर पहुंचते हैं जब हम अपने भावों को समझने की कोशिश करते हैं तब भाव गिरते हैं। उन्हें न एहसास होता है, न ही सोचते हैं। न ही पतन हुआ है, इसे अपना स्वभाव मान लेते हैं ।
मान तो सभी में होता है लेकिन अतिमान बड़ा भयानक होता है : मान तो सभी में होता है अतिमान बड़ा भयानक होता है। वे मान में ही मगन रहते हैं। हमें अपने भीतर देखना है। मेरे मन की क्या स्थिति है क्या परिणीति है। किस मान से महामान, सम्मान की चाह करना ही मान है। श्रेष्ठता की चाह करना ही मान है। कोई चाहता है कि सम्मान मिले। श्रेष्ठता एक सीमा तक मैं सही मानता हूं। सारा श्रेष्ठ केवल और केवल मुझे मिले क्योंकि मैं ही श्रेष्ठ हूं । रावण की भी यही स्थिति थी और वह चला गया। अपने मन को पलट कर देखने की जरूरत है कि मेरे मन में रावण का रूप तो नहीं आता है। छोटी-छोटी बातों पर वह स्वयं अपने को अपना अपमानित महसूस करता है इसी प्रकार दान देने वाले किसी कार्यक्रम में बैठे हों और उनका नाम यदि भूलवश थोड़ा बाद में आता है तो वह नाराज हो जाते हैं। मान व्यक्ति को अशांत बनाता है। छोटी-छोटी बातों से अपने को अपमानित महसूस कर लेता है यही तो महामानी है।
जीवन में बुरा कार्य नहीं करो तो फिर किसी से डरने की बात नहीं
मुनिश्री ने कहा मन डरपोक भी बहुत होता है। बात-बात पर डरता है और डर भी बहुत बड़ी दुर्बलता है। आप जीवन में अकार्य नहीं करो तो फिर किसी से डरने की बात नहीं होती है। भावेश में आकर के लोग कुछ भी कर बैठते हैं और फिर बाद में पश्चाताप करते हैं। भावनाओं के बहाव में आकर ऐसे कृत्य कर बैठते हैं फिर जीवन भर रोते हैं। संत कहते हैं कि कोई कार्य करने से पूर्व आपको सोचना चाहिए बहुत लोग बिना सोचे कार्य कर देते हैं यह मूर्खता है। मन में सोच लो ऐसा कार्य नहीं करूंगा।
जो सुझाव अच्छा दे उस पर हमेशा विचार करना चाहिए
मुनि श्री ने कहा उतावली में आदमी सब भूल जाता है मित्र को भी शक की दृष्टि से देखता है कार्य और अकार्य पर हमेशा विचार करो जो सुझाव अच्छा दे उस पर हमेशा विचार करना चाहिए लोगों में सहनशीलता कम होती जा रही है रोज अपराध बढ़ रहे हैं अपराध बढ़ने का कारण शराब का नशा और क्षणिक भावेश है इसका मतलब है नील लेश्या यहां उतार पर है।
— अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी