रात्रि भोजन त्याग का है, हिंदू पुराणों में भी उल्लेख।


आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी की दैनिक जीवनचर्या कम होती चली जा रही है। शरीर को स्वस्थ्य और स्फूर्तिमय बनाये रखने के लिए जीवनचर्या जरूरी है। इसी के मददेनजर वैज्ञानिकों सहित बड़े-बड़े डाक्टरों ने भी दिन में भोजन करने को उचित माना है। सर्वप्रथम जैन समुदाय में रात्रि भोजन निषेध है किंतु हिंदू ग्रंथों में भी रात्रि भोजन निषेध का उल्लेख स्पष्टतया किया गया है। महाभारत के शांति पर्व में कहा गया है कि चत्वारि नरक द्वारं प्रथमं रात्रि भोजनम। परस्त्री गमनंचैव, सन्धानानकायिकम। अर्थात नरक में जाने के चार द्वार हैं। पहला रात्रि भोजन, दूसरा परस्त्री सेवन, तीसरा सन्धान अर्थात अधिक समय रखा अचार खाना और चौथा अनन्तकायिक अर्थात जमीकंद का सेवन करना।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार : अस्तंगते दिवानाथे आपो रुधिर मुच्यते। अन्नं मांस समं प्रोक्तं मार्कण्डेय मडिषर्णा।। अर्थात सूर्य के अस्त होने पर खाना खाने वालों का अन्न मांस के समान एवं जल खून के समान कहा जाता है। इसी पुराण के अनुसार : मृते स्वजन मात्रेपि सूतकं जायते किल। अस्तंगते दिवानाथे भोजनं कथं क्रियते।।

ऋषीर भारत में उल्लेख है : मद्यमांसाशनं रात्राै भचेजनं कंद भक्षणम। ये कुर्वन्ति वृथा तेषां, तीर्थयात्रा जपस्तप।। वृथा एकादशी प्रोक्ता वृथा जागरणं हरे। वृथा च पुष्करी यात्रा वृथा चान्द्रायणं तप। अर्थात मद्य, मांस का सेवन, रात्रि में भोजन एवं कंदमूल भक्षण करने वाले के तप, एकादशी व्रत, रात्रि जागरण, पुष्कर यात्रा तथा चान्द्रायण व्रतादि सब निष्फल हैं।


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