ड्रेस से एड्रेस की पहचान


लगभग तीस वर्ष पूर्व की घटना है। आचार्यश्री सिद्ध क्षेत्र मुक्तागिरी में चातुर्मास हेतु विराजित थे।

आजकल की तरह उस समय भी उनके दर्शनार्थ प्रतिदिन श्रावको का तांता लगा रहता था।

एक दिन आचार्यश्री  के दर्शन हेतु दिल्ली से एक बड़ा जत्था मुक्तागिरी आया था

प्रातः काल जिनालय में अभिषेक पूजन के पश्चात इनके महापुण्य के उदय से इन्हें आचार्यश्री को आहार देने का सौभाग्य मिला आहार देने के बाद इनकी प्रसन्नता और हर्ष किसी शिखर की उतुंग उचाइयो पर था।

दोपहर सामायिक के पश्चात सभी दिल्लीवासी बड़े गदगद भावो से आचार्यश्री के चरणों में पहुचे थोड़ी देर बाद इनके दल के एक श्रावक ने आचार्यश्री से निवेदन किया

आचार्यश्री ! …..            हम प्रतिदिन अभिषेक नही कर पाते क्योकि धोती दुपट्टा पहनना बड़ा जटिल कार्य लगता है  और धोती पहनने में शर्म भी लगती है यदि हमें शुद्ध पेंट शर्ट में अभिषेक करने की अनुमति मिल जाए तो हमारे साथ और काफी लोग अभिषेक करने एवम आहार देने तैयार हो जाएंगे।

इतने में एक उत्साह से लबरेज़ युवा श्राविका बोल उठी हां आचार्यश्री हमे भी पारम्परिक साडी पहनना बड़ा अटपटा लगता है यदि हमें सलवारसूट अथवा अन्य ड्रेस में आहार देने का अवसर मिले तो बहुत सी बहनेआहार देने का पुण्य प्राप्त कर सकती है  और हमारे साथ काफी लोग धर्म से जुड़ सकते है

यह सुनआचार्यश्री मंद मंद मुस्कुरा उठे आचार्यश्री ने इनसे प्रश्न किया आप लोग डॉक्टर को दूर से कैसे पहचान लेते हो?

एक लगभग 14 वर्षीय किशोर ने लगभग उछलते हुए  झटपट जवाब दिया आचार्यश्री उनके सफेद कोट से और गले में लटके स्टेथेस्कोप से

आचार्यश्री ने पुनः प्रश्न किया वकील और पुलिस तथा ट्रेन में टी टी ई को कैसे पहचानते हो कि यही व्यक्ति वकील पुलिस अथवा टी टी ई है?

उस श्राविका ने कहा_ आचार्यश्री ! ..बडी आसान सी बात है हम उनके कपड़ो से बिना पूछे जान जाते है कि वे कौन है।

आचार्यश्री ने मुस्कुराते हुए कहा अभिषेक हेतु श्रावको की ड्रेस भी धोती दुपट्टा एवम श्राविकाओं के आहार देने साडी निर्धारित की गई है और यह श्रावक श्राविकाओं की सर्वमान्य ड्रेस है।

आचार्यश्री ने पुनः मुसकुराते हुए कहा सुनो! ड्रेस से ही एड्रेस की पहचान होती है जिसकी ड्रेस नही उनका एड्रेस नही होता।

आचार्यश्री के इतनी सरलता से ड्रेस और एड्रेस पर विवेचन करने से सभी श्रावक श्राविकाएं गदगद हो गए

आज मुझे अनायास यह घटना स्मरण में आ गई क्या हम कम से कम मंदिरजी में एवम गुरुओं के दर्शन करने हेतु अपनी पारम्परिक ड्रेस का उपयोग कर सकते है यह हम सबके लिए विचारणीय है।

भावाभिव्यक्ति

राजेश जैन, संयोजक

श्री दि जैनाचार्य विद्यासागर


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